सूफ़ी क़व्वाली में गागर
कोऊ आई सुघर पनिहार, कुआँ नाँ उमड़ चला
के तुम गोरी साँचे की डोरी. के तुम्ही गढ़ा रे सोनार
कुआँ नाँ उमड़ चला
 
            
            
            
            
            
            
            
         
        
    
    
कोऊ आई सुघर पनिहार, कुआँ नाँ उमड़ चला
के तुम गोरी साँचे की डोरी. के तुम्ही गढ़ा रे सोनार
कुआँ नाँ उमड़ चला
 
        
    
    
इक्सीर-ए-इ’श्क़ अ’ल्ला-म-तुलवरा हज़रत मख़्दूम शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी रहमतुल्लाहि अ’लैहि का शुमार बर्रे-ए-सग़ीर के मशाइख़-ए-चिशत के अकाबिर सूफ़िया में होता है। आप हज़रत शैख़ नूर क़ुतुब-ए-आ’लम पंडवी बिन शैख़ अ’लाउ’ल-हक़ पंडवी रहमतुल्लाहि-अलैह के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं। आपका तअ’ल्लुक़ सूबा-ए-उत्तरप्रदेश के एक तारीख़ी क़स्बे गढ़ी मानिकपूर, ज़िला प्रतापगढ़ से है। जिसका क़दीमी नाम कड़ा मानिकपूर है। आपकी विलादत… continue reading
 
        
    
    
इंसानी जज़्बात के इज़हार के लिए इंसान ने जिन फ़ुनून को वज़ा’ किया है उनमें से एक अज़ीमुश्शान फ़न इ’ल्म-ए-मौसीक़ी है। क़ुदरत के कारोबार में हर जगह मौसीक़ी के अ’नासिर नज़र आते हैं। चुनाँचे चश्मों का क़ुलक़ुल, झरनों का जल-तरंग, परिंदों की चहचहाहट, हवाओं की सरसराहाट, बिजली की गरज, बारिश का रिदम, मौजों का शोर,… continue reading