सय्यिद अमीर माह बहराइची
सय्यिद अफ़ज़लुद्दीन अबू जा’फ़र अमीर माह बहराइची को बहराइच में सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी के बा’द सबसे ज़्यादा मक़्बूलियत-ओ-शोहरत हासिल हुई।आपकी पैदाइश बहराइच में हुई। सन-ए-विलादत किसी किताब में मज़कूर नहीं हैं।
प्रोफ़ेसर ख़लीक़ अहमद निज़ामी(अ’लीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी) लिखते हैं:
“मीर सय्यिद अमीर माह (रहि.)बहराइच के मशहूर-ओ-मा’रूफ़ मशाइख़-ए-तरीक़त में थे।सय्यिद अ’लाउद्दीन अल-मा’रूफ़ ब-अ’ली जावरी से बैअ’त थी।आपने वहदतुल-वजूद के मुख़्तलिफ़ मसाइल पर रिसाला ”अल-मतलूब फ़ि-इ’श्क़िल-महबूब” लिखा था।फ़ीरोज़ शाह जब बहराइच गया था तो उनकी ख़िदमत में भी हाज़िर हुआ और ”बिसयार सोहबत-ए-नेक दिगरम बरामद”।फ़ीरोज़ शाह के ज़ेहन में मज़ार –ए-हज़रत सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी से मुतअ’ल्लिक़ कुछ शुबहात भी थे ,जिनको सय्यिद अमीर माह (रहि.)ने रफ़्अ’ किया। अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती (मुसन्निफ़-ए-मिर्अतुल-असरार) का बयान है कि इस मुलाक़ात के बा’द फ़ीरोज़ शाह का दिल दुनिया की तरफ़ से सर्द पड़ गया था, और उसने बाक़ी उ’म्र याद-ए-इलाही में काट दी।” (सलातीन-ए-दिल्ली के मज़हबी रुजहानात सफ़हा 414)
मौलाना हकीम अ’ब्दुल हई नदवी ”नुज़हतुल-ख़वातिर”में लिखते हैः
“शैख़ मोहम्मद बिन निज़ामुद्दीन बिन हुसामुद्दीन बिन फ़ख़्रुद्दीन बिन यहया बिन अबी-तालिब बिन महमूद बिन अ’ली बिन यहया बिन फ़ख़्रुद्दीन बिन हम्ज़ा बिन हसन बिन अ’ब्बास बिन मोहम्मद बिन अ’ली बिन मोहम्मद बिन इस्माई’ल बिन जा’फ़र हुसैनी (इमाम जा’फ़र सादिक़)।अबू जा’फ़र कुनिय्यत,अमीर माह के नाम से मशहूर,बड़े मशाइख़ में से थे।तरीक़ा-ए-सुलूक शैख़ अ’लाउद्दीन हुसैनी से तय किया और उन्हीं से ख़िर्क़ा-ए-फ़क़ीरी पहना।और शैख़ को जमालुद्दीन कोइली की सोहबत इख़्तियार की और उनसे भी राह-ए-तरीक़त इख़्तियार किया।आपकी तस्नीफ़ कर्दा किताबों में से’ अल-महबूब फ़ि-इ’श्क़िल-मतलूब मआ’रिफ़” फ़ारसी ज़बान में है।उसकी तस्नीफ़ फ़ीरोज़ शाह (तुग़लक़) के ज़माने में की थी जबकि फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ ने आपसे शहर-ए-बहराइच में मुलाक़ात की और फ़ैज़ भी हासिल किया। सय्यिद अशरफ़ जहाँगीर समनानी (रहि.) भी इसी शहर में आपसे मिले और उनके फ़ज़्ल-ओ-कमाल के मो’तरिफ़ हुए जैसा कि ”मिर्अतुल-असरार ”में मौजूद है।मेहर-ए-जहाँ-ताब में लिखा है कि वो (अमीर माह)फ़ीरोज़ शाह के ज़माने में वफ़ात पा गए थे।” (नुज़हतुल-ख़वातिर ,जिल्द 3, स 203)
मख़दूम सय्यिद मुई’नुल-हक़ झोंसवी (रहि.) लिखते हैः
“हज़रत इमाम जा’फ़र सादिक़ के बड़े साहिब-ज़ादे सय्यिद इस्माई’ल आ’रज थे जो वालिद-ए-माजिद की हयात में ही वफ़ात कर गए। सय्यिद इस्माई’ल के दो साहिब-ज़ादे थे।1.सय्यिद अ’ली अकबर जिनकी औलादों में मख़दूम सय्यिद अशरफ़ जहाँगीर समनानी (रहि.) बिन सुल्तान इबराहीम आते हैं।और मीर सय्यिद अ’लाउद्दीन हैं जिनकी क़ब्र-ए-अतहर अवध में है।इन दोनों बुज़ुर्गों का सिलसिला-ए-नसब मीर सय्यिद अ’ली अकबर बिन मीर सय्यिद इस्माई’ल बिन हज़रत इमाम जा’फ़र सादिक़ पर मुंतहा होता है।हज़रत मीर इस्माई’ल आ’रज के दूसरे साहिब-ज़ादे मीर सय्यिद मोहम्मद हैं जिनकी नस्ल से हज़रत सय्यिद अबू जा’फ़र अमीर माह बहराइची हैं।आप सिलसिला-ए-किब्र्विया सुहर्वर्दिया में हज़रत मीर सय्यिद अ’लाउद्दीन ज्यूरी (रहि.) के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा थे।हज़रत सय्यिद अबू जा’फ़र अमीर माह का नसब भी इस तौर से हज़रत मीर सय्यिद इस्माई’ल आ’रज तक पहुंचता है।” (मंबउ’ल-अन्साब ,झोंसवी, 2010 ई’स्वी,सफ़हा 348)
साहिब-ए-”मिर्अतुल-असरार’ अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती लिखते हैं कि सय्यिद अशरफ़ जहाँगीर समनानी ने जिस किताब में हिंदुस्तान के तमाम सादात का ज़िक्र किया है, उस में लिखते हैं:
“सादात-ए-ख़ित्ता-ए-बहराइच का नसब बहुत मशहूर है। सादात-ए-बहराइच में सय्यिद अबू जा’फ़र अमीर माह (रहि.) को मैंने देखा है। वादी-ए-तफ़ावुत में बे-नज़ीर थे। सय्यिद शहीद मस्ऊ’द ग़ाज़ी के मज़ार की हाज़िरी के मौक़ा’ पर मैं और सय्यिद अबू जा’फ़र अमीर माह और हज़रत ख़िज़्र अ’लैहिस्सलाम साथ साथ थे। उनकी मशीख़त के अक्सर हालात के लिए मैंने हज़रत ख़िज़्र की रूह से इस्तिफ़ादा किया है।सय्यिद अमीर माह मज़ार का ज़ियारत-गाह-ए-ख़ल्क़ है।” (मिर्अतुल-असरार 1993 ईֺ’स्वी, सफ़हा 929)
साहिब-ए-मिर्अतुल-असरार अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती ने हज़रत सय्यिद अमीर माह रहमतुल्लाहि अ’लैहि के हालात तफ़्सील से लिखे हैं।
‘‘आ’रिफ़ पेशवा-ए-यक़ीन मुक़्तदा-ए-वक़्त मीर सय्यिद अमीर माह बिन सय्यिद निज़ामुद्दीन क़ुद्दिसा सिर्रहु,आपका शुमार कामिलीन-ए-रोज़-गार-ओ-बुज़ुर्गान-ए-साहिब-ए-असरार में होता है।आप शान-ए-अ’ज़ीम-ओ-करामात-ए-वाफ़िर-ओ-हाल-ए-क़वी-ओ-हिम्मत-ए-बुलंद के मालिक थे। आपके वालिद मीर सय्यिद निज़ामुद्दीन शहर के आ’ली-नसब सादात में से थे और हादिसा-ए-हलाकू ख़ाँ के वक़्त हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए।आप बहराइच में मुक़ीम हुए और उसी जगह विसाल पाया।’’
सय्यिद अमीर माह ज़ाहिरी उ’लूम हासिल करने के बा’द मीर सय्यिद अ’लाउद्दीन जावरी की ख़िदमत में जाकर मुरीद हो गए और कमालात-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी से बहरा-मंद हुए।कुछ अ’र्सा बा’द सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया का ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त हासिल किया और मस्नद-ए-इर्शाद पर मुतमक्किन हुए।क़ुतुब-ए-औलिया शैख़ निज़ामुद्दीन अल-मुवय्यिद जिनका मज़ार क़स्बा-ए-कोली में वाक़े’ है के पिसर-ज़ादे शैख़ जमाल भी उनके मुरीद थे। मीर सय्यिद अ’लाउद्दीन जावरी,शैख़ शहाबुद्दीन उ’मर सुहरवर्दी के अकमल खलीफ़ा में थे और बड़े साहिब-ए-कमाल थे।आप सुल्तानुल-मशाइख़ के हम-अ’स्र थे और आपकी उ’म्र दराज़ थी।आपका मज़ार मौज़ा’ जावर में है जो दिल्ली के क़रीब है।सय्यिद अमीर माह ज़ाहिरी-ओ-बातिनी सफ़र के बा’द बहराइच में मस्नद-ए-इर्शाद पर बैठे और ख़ल्क़-ए-ख़ुदा को फ़ैज़ पहुंचाया।
शैख़ ऐ’नुद्दीन क़िताल बिन शैख़ सा’दुल्लाह कीसा-दार कंतोरी ने भी सय्यिद अमीर माह (रहि.) से तर्बियत हासिल की थी।
आपकी तसानीफ़ के सिलसिला में सिर्फ़ एक किताब “अल-मतलूब फ़ि-इ’श्क़िल-महबूब” नामी रिसाला का ज़िक्र मिलता है जो ब-अ’ह्द-ए-सुल्तान फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ की है। इस रिसाला के पहले ‘बाब दर बयान-ए-इ’श्क़’ का कुछ हिस्सा मुसन्निफ़-ए-मिर्अतुल-असरार ने नक़ल किया है और कुछ हिस्सा हज़रत मौलाना शाह नई’मुल्लाह बहराइची ने अपनी किताब ”मा’मूलात-ए-मज़हरिया ”में नक़ल कर के सालिक के कुछ दर्जे और मक़ामात बताए हैं।
मुसन्निफ़-ए-मिर्अतुल-असरार ने नक़ल किया है कि ”ऐ अ’ज़ीज़ आदम अ’लैहिस्सलाम को सुल्तान-ए-इ’श्क़ ने उस दिन मुँह दिखाया जब वो बहिश्त से बाहर लाए गए और दुनिया में तन्हा छोड़ दिया।नूह अ’लैहिस्सलाम को सुल्तान-ए-इ’श्क़ ने तूफ़ान के अंदर कश्ती में मुँह दिखाया।यूनुस अ’लैहिस्सलाम को मछली के पेट में।इब्राहीम अ’लैहिस्सलाम को आग में फेंकते वक़्त। या’क़ूब को उस वक़्त जब यूसुफ़ अ’लैहिस्सलाम उनसे जुदा हुए। यूसुफ़ अ’लैहिस्सलाम को उस वक़्त जब वो बाज़ार-ए-मिस्र में सतरह दिरहम के इ’वज़ फ़रोख़्त हुए। मूसा अ’लैहिस्सलाम को उस वक़्त जब वो मिस्र से बाहर निकले और फ़िरऔ’न उनके पीछे दौड़ रहा था। सुलैमान अ’लैहिस्सलाम को उस वक़्त जब उनकी अँगूठी गिर गई और उन के मुल्क से बाहर जा पड़ी। ज़करिया अ’लैहिस्सलाम को उस वक़्त जब उनके सर पर आरा चलाया गया और हज़रत मोहम्मदुर्ररसूलुल्लाह को उस रोज़ सुल्तान-ए-इ’श्क़ ने मुँह दिखाया जब आप ऐ’न मक्का से मदीना की तरफ़ हिजरत की। हुसैन बिन मंसूर को उस रोज़ जब उन्हें दार पर चढ़ाया गया। इ’न्दल-क़ुज़ात हमदानी को उस वक़्त जब बोरिया में लपेट कर आग में फेंका गया और इस रिसाला को जम्अ’ करने वाले को (या’नी मुसन्निफ़ को) उस रोज़ सुल्तान-ए-इ’श्क़ ने मुँह दिखाया जब ख़ित्ता-ए-बहराइच में जो इस फ़क़ीर की जा-ए-पैदाइश है ,सिपह-सालार सा’दुद्दीन मस्ऊ’द ग़ाज़ी के पावन्ती किताब-ए-फ़र्हतुल-आ’शिक़ीन के मुतालआ’ में मश्ग़ूल था। उसी वक़्त ख़्वाजा हज़रत ख़िज़्र की ज़ियारत हुई। आपने एक आ’लिम की सूरत में हवा में खड़े हो कर फ़रमाया
“ऐ फ़र्ज़न्द होश्यार हो जाओ। लश्कर-ए-इ’श्क़ दौड़ा हुआ आ रहा है। उसी हफ़्ता के अंदर लश्कर ने जम्अ’ हो कर बहराइच पर हमला किया और घरों को जला दिया। ख़ानक़ाह में भी चंद आदमी शहीद हो गए और इस फ़क़ीर को भी ज़द-ओ-कोब किया।बल्कि इ’श्क़ की ज़र ज़र्बें मुँह पर पड़ीं जैसे कि चाँद के मुँह पर हैं।मैं शुक्र बजा लाया कि इ’श्क़ ने इस फ़क़ीर को मुँह दिखाया। इस वजह से वहाँ से तर्क-ए-सुकूनत कर के अवध चला गया। क्यूँकि ये इ’श्क़-बाज़ी है बल्कि जाँ-बाज़ी है।इस रिसाले में आपने अक्सर औलिया-ए-किराम के हालात-ओ-मक़ालात बयान फ़रमाए हैं। साहिब-ए-मिर्अतुल-असरार मज़ीद लिखते हैं कि आपके कमालात का इस बात से अंदाज़ा हो सकता है कि सय्यिद अमीर माह का मज़ार बहराइच के ख़ित्ता में ज़ियारत-गाह-ए-ख़ल्क़ है और आपकी औलाद अब तक वहाँ आबाद है।उनमें से मीर सय्यिद अहमद को इस फ़क़ीर (मुसन्निफ़-ए-किताब मिर्अतुल-असरार)ने बादशाह जहाँगीर के अ’हद में दूसरी मर्तबा देखा। बड़े नेक आदमी थे। इस वक़्त मीर सय्यिद अ’लाउद्दीन अख़लाक़-ए-मोहम्मदी से मुत्तसिफ़ हैं और अपने अजदाद की मस्नद पर मुतमक्किन हैं।(मिर्अतुल-असरार सफ़हा 925-926)
मुई’न अहमद अ’लवी काकोरवी अपने रिसाले ‘मीर सय्यिद अमीर माह बहराइची’ मैं लिखते हैं कि आपका ज़माना हज़रत नसीरुद्दीन महमूद (रहि.)”चिराग़ दिल्ली’’(मुतवफ़्फ़ा 757हिज्री) के ज़माने से लेकर हज़रत मीर सय्यिद अशरफ़ जहाँगीर (रहि.) (मुतवफ़्फ़ा 808 हिज्री) तक है।(मीर सय्यिद अमीर माह मतबूआ’ सानी 2015-ई’स्वी सफ़हा 8)
प्रोफ़ेसर इक़बाल मुजद्दिदी (पाकिस्तान)लिखते हैं कि शैख़ अ’ब्दुर्रहमान चिश्ती के एक बयान से अंदाज़ा होता है कि अमीर माह कई किताबों के मुसन्निफ़ थे।लेकिन उन्होंने उनके सिर्फ़ एक रिसाला ‘अल-मतलूब फ़ि-इ’श्क़िल-महबूब’ का ही ज़िक्र किया है।आपके इस रिसाला’ अल-मतलूब फ़ि-इ’श्क़िल-महबूब ”का हिंदुस्तान में सिर्फ़ एक नुस्ख़ा मौजूद है।जैसा कि प्रोफ़ेसर ख़लीक़ अहमद निज़ामी ने अपनी किताब ”सलातीन-ए-दिल्ली के मज़हबी रुजहानात’ में लिखते हैं कि उसका एक क़लमी नुस्ख़ा मेरे ज़ाती कुतुब-ख़ाने में है।
प्रोफ़ेसर इक़्बाल मुजद्दिदी ने अपनी तस्नीफ़ तज़्किरा-ए-उ’लमा-ओ-मशाइख़-ए-पाकिस्तान-ओ-हिन्द (जिल्द-ए-अव्वल)के सफ़हा 643 पर लिखते हैं:
इस रिसाला के तीन क़लमी नुस्ख़े कुतुब-ख़ाना दाता गंज बख़्श (रहि.) में और कोएटा में सुल्तानुत्ताइफ़ा अ’ली के कुतुब-ख़ाना में एक क़लमी नुस्ख़ा मौजूद हैं।कोएटा में मौजूद क़लमी नुस्ख़ा से मा’लूम होता है कि अमीर माह (रहि.)ने ये रिसाला सुल्तान फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ के लिए तालीफ़ किया था।लेकिन उस रिसाले के दीगर खत्ती नुस्ख़ों से ये जुम्ला हज़्फ़ हो चुका है।
तारीख़-ए-फ़रिश्ता में लेखक ने फ़ीरोज़ शाह के सफ़र-ए-बहराइच के तज़्किरा में अमीर माह का तज़्किरा किया है। फ़ीरोज़ शाह आपकी बुजु़र्गी से मुतअस्सिर हो कर आप ही के साथ सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी के मज़ार पर हाज़िर हुआ था। रास्ता में सय्यिद साहिब से हज़रत सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी की बुज़ुर्गी-ओ-करामात के वाक़िआ’त पूछने लगा। आपने कहा कि” यही करामत क्या कम है कि आपके ऐसा बादशाह और मेरा ऐसा फ़क़ीर दोनों उनकी दरबानी कर रहे हैं। ”इस जवाब पर बादशाह जिसके दिल में इ’श्क़ की चाशनी थी बहुत महज़ूज़ हुआ।
हकीम मौलवी मोहम्मद फ़ारूक़ नक़्शबंदी बहराइची आपकी करामत के बारे में लिखते हैं:
अमीर माह बहराईची की करामातें अहल-ए-बहराइच में बहुत कुछ मशहूर हैं। अ’वाम-ए-हुनूद-ओ-अहल-ए-इस्लाम को ख़ुदा की झूटी क़सम खाने में बाक नहीं मगर आपकी झूटी क़सम खाने से बहुत डरते हैं। मौजूदा वक़्त में भी लोग यहाँ झूटी क़समें नहीं खाते हैं।(सवानिह-ए- सय्यिद सालार मस्ऊ’द ग़ाज़ी सफ़हा 3)
औलाद के सिलसिला में सिर्फ़ दो साहिब-ज़ादों का तज़्किरा मिलता है ,जिनसे ख़ानदान फैला।
(1) हज़रत सई’द माह उ’र्फ़ चाँद माह (2) हज़रत ताज माह
हज़रत सई’द माह की ज़ौजा-ए-ऊला मदनी थीं, उनके चार बेटे हुए। सय्यिद अ’ली माह ,सय्यिद जान माह , सय्यिद आ’लम माह और सय्यिद बड़े माह। दूसरे बेटे हज़रत ताज माह का तज़्किरा मुतअ’द्दिद किताबों में मिलता है।आप सबकी औलादें आज भी शहर बहराइच और नगरौर में आबाद हैं।
मिर्अतुल-असरार के मुसन्निफ़ ने भी मीर माह के एक साहिब-ज़ादा सय्यिद ताज माह का तज़्किरा किया है जो उ’म्र में सबसे छोटे थे । लिखते हैं:
‘‘अ’जब हाले क़वी दाश्त, दाइमुलख़म्र बूद ब-तरीक़े मलामत रफ़्ते-ओ-जमाल-ए-विलाएत-ए-ख़ुद रा अज़ नज़र-ए-अग़यार पोशीदः दाश्ते’’
उसके बा’द ये वाक़िआ’ नक़ल करते हैं कि”किसी ज़माना में सय्यिद अमीर माह बीमार पड़े तो बेटे ने वालिद की ज़िंदगी से ना-उम्मीद हो कर बीमारी सल्ब कर के अपने ऊपर ओढ़ ली और ”जान दर मुशाहदा-ए-हक़ तस्लीम कर्द’। मीर मोहम्मद माह साहिब को तो सेहत हो गई ,मगर ग़मगीन बाप को लड़के की इस्तिअ’दाद-ए-बातिनी का एहसास हुआ और फ़िक्र-मंद रहने लगे। इत्तिफ़ाक़न एक दिन उनकी क़ब्र पर गए तो देखा कि एक मुजाविर की हथेली पर ”ब-ख़त्त-ए-सब्ज़’ ये शे’र लिखा था। जब तक वो ज़िंदा रहा मिटा नहीं।
ब-गो ऐ मुर्ग़-ए-ज़ेरक हम्द-ए-मौला
कि जान-ए-ताज मह बर अ’र्श बुर्दंद
तर्जुमा: ऐ दाना परिंदे ख़ुदा की हम्द करो और उनको बताओ कि ताज माह की जान अ’र्श पर ले गए।
तारीख़-ए-आईना-ए-अवध के मुसन्निफ़ मौलाना शाह अबुल हसन क़ुतबी वल-हुसामी मानिकपूरी ने अफ़सरान-ए-कमिश्नरी के साथ अपनी मुलाज़मत के दौरान सफ़र किया । ख़ुद1875 ई’स्वी में बहराइच आए और यहाँ के लोगों से मिलकर तहक़ीक़ात कर के एक पूरे बाब में उसकी तफ़्सीलात लिखी है।लिखते हैं:
हलाकू ख़ाँ के हंगामाँ-ए-बग़दाद से परेशान हो कर 657 हिज्री मुताबिक़ 1358 ई’स्वी में सय्यिद हुसामुद्दीन जद्द-ए-सय्यिद अफ़ज़लुद्दीन अबू जा’फ़र अमीर माह बहराइची बग़दाद शरीफ़ से जिला-वतन हो कर ब-राह-ए-गज़नी लाहौर आए। बा’द क़याम-ए-चंदे लाहौर से दिल्ली आए। उस वक़्त बादशाह-ए-दिल्ली सुल्तान ग़यासुद्दीन बलबन था। उसने आना आप का बा’इस-ए-युम्न समझ कर वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया। 743 हिज्री हमें जब मोहम्मद शाह तुग़लक़ ने दिल्ली को वीरान कर के देव-गढ़ दौलताबाद दक्कन ले जाना चाहा उस वक़्त सय्यिद निज़ामुद्दीन वालिद-ए-माजिद हज़रत के वहाँ न गए और जानिब-ए-अवध मुतवज्जिह हुए। 744 हिज्री हमें सवाद-ए-मक़ाम-ए-बहराइच पसंद-ए-मिज़ाज हुआ और तर्ह-ए-इक़ामत डाली।754 हिज्री मुताबिक़ 1353 ई’स्वी में जब फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ सफ़र-ए-बंगाल से वारिद-ए-बहराइच हुआ तो सय्यिद अफ़ज़लुद्दीन अबू जा’फ़र अमीर माह का मो’तक़िद हो कर चंद देहात वास्ते सिर्फ़ ख़ानक़ाह के अ’ता-ओ-मुआ’फ़ किए। उनके बेटे सय्यिद ताजुद्दीन उनके सय्यिद मस्ऊ’द उनके सय्यिद अहमदुल्लाह, उनके सय्यिद महमूद ,उनके सय्यिद मोबारक, उनके सय्यिद नासिरुद्दीन, उनके सय्यिद निज़ामुद्दीन ,उनके सय्यिद रुकनुद्दीन, उनके सय्यिद अ’लीउद्दीन, उनके सय्यिद ग़ुलाम हुसैन, उनके सय्यिद ग़ुलाम रसूल, उस वक़्त तक सब लोग मुही-ए-सुन्नत-ए-आबाई के रह कर तरीक़ा-ए-रुश्द-ओ-इर्शाद जारी रखते थे और एहतिमाम-ए-आ’रास का करते रहे। जब उनके बेटे सय्यिद ग़ुलाम हुसैन सानी हुए, उनको वैसा फ़ज़्ल-ओ-कमाल हासिल न था। और तरीक़ा-ए-आबाई रुश्द-ओ-इर्शाद ज़ई’फ़ हो गया। उनके दो पिसर ग़ुलाम मोहम्मद-ओ-ग़ुलाम रसूल सानी।ये मुआ’सिर थे, नवाब शुजाउ’द्दौला बहादुर के, बा’द सुल्ह-ए-बक्सर के जब सुल्ह-नामा गर्वनमेंट-ए-इंग्लिशिया से हुआ तो नवाब मम्दूहुज़िक्र ने हुक्म ज़ब्ती-ए-कुल मुआ’फ़ियात-ए-सूबा-ए-अवध का सादिर क्या। ये दोनों भाई ब-तमअ’ बहाली-ए-मुआ’फ़ी ब-तब्दील-ए-मज़हब-ए-आबाई पाबंद-ए-मज़हब-ए-इमामिया हो गए। इस क़दर फ़ाएदा तब्दील-ए-मज़हब से हुआ कि निस्फ़ मुआ’फ़ी बहाल और निस्फ़ ज़ब्त हो गई । उस वक़्त से बजाए आ’रास के ताज़िया-दारी करने लगे।(आईना-ए-अवध सफ़हा 154-155)
अमीर माह बहराइची रहमतुल्लाहि अ’लैह की वफ़ात 14 जून 1371 ई’स्वी मुताबिक 29 ज़िलक़अ’दा 772 हिज्री को बहराइच में हुई थी।”ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया’’ में मआ’रिजुल-विलायत के हवाला से लिखा है कि मीर सय्यिद अमीर माह(रहि.) ने इंतिक़ाल किया। उनका मज़ार-ए-पुर-अनवार मोहल्ला वज़ीर बाग़ चाँद-पुरा में निज़्द-ए-नानपारा बस स्टैंड शहर-ए-बहराइच में वाक़े’ है।ये इ’लाक़ा उ’र्फ़-ए-आ’म में अमीर माह(रहि.)के नाम से मशहूर है।आपका मज़ार बहराइच में ख़ल्क़ की ज़ियारत-गाह है।आपकी ख़ानक़ाह में एक आ’ली-शान मस्जिद भी है।ख़ज़ीनतुलअस्फ़िया में मुसन्निफ़ ने ये क़ितआ’-ए-वफ़ात लिखा है:
चूँ शुद मीर मह दर बहिश्त बुलंद
ब-तर्हील-ए-आँ शाह-ए-रौशन यक़ीन
‘‘यके पीर-ए-महताब सय्यिद ब-गो’’
दिगर कुन रक़म ”माह-ए-रौशन यक़ीन’
772 हिज्री
आईना-ए-अवध का बयान है कि’ मज़ार शरीफ़ आपका जानिब उत्तर किनारे आबादी-ए-बहराइच अंदर गुंबद-ए-ख़िश्ती वाक़े’ है। हवाली उसके चार-दीवारी पुख़्ता है और चार-दीवारी के दरवाज़ा पर एक छोटी सी मस्जिद है। अनवार-ओ-बरकातए-ए-मज़ार शरीफ़ इस वक़्त तक जारी हैं हैं और अहल-ए-बातिन उनके फ़ैज़ से माला-माल हैं’।
ये मौजूदा ज़माना में भी ज़ियारत-गाह-ए-ख़ल्क़ है। मोहल्ला का नाम भी उ’र्फ़-ए-आ’म में अमीर माह के नाम से मशहूर है। अब ये जगह क़ल्ब-ए-शहर बन गई है। बाज़ार मज़ार शरीफ़ तक फैल गया है। चारों तरफ़ आबादी ही आबादी है। शिमाल मश्रिक़ जानिब पुराने सरकारी अस्पताल की इ’मारतें हैं।जुनूब-दख्खिन से शिमाल को एक सड़क जाती हुई पक्षिम जानिब सरहद बनाती है।
मौजूदा इहाता के अंदर क़दीम मस्जिद है जो मौजूदा वक़्त में तौसीअ’ हो कर 3 मंज़िला इ’मारत पर मुश्तमिल है।इसके अ’लावा आपके मक़्बरा की भी तौसीअ’ हुई है और अब नया शानदार गुंबद ता’मीर किया गया है।
आपका उ’र्स 29 माह ज़ीक़अ’दा को होता है। सुब्ह क़ुरआन-ख़्वानी के बा’द क़ुल होता है। शाम को क़व्वाली की महफ़िल होती है और मग़रिब के क़रीब गागर उठा कर मज़ार पर नज़राना-ए-अ’क़ीदत पेश किया जाता है। दोपहर से देर रात तक मेला लगता है।
Guest Authors
- Aatif Kazmi
- Absar Balkhi
- Afzal Muhammad Farooqui Safvi
- Ahmad Raza Ashrafi
- Ahmer Raza
- Akhlaque Ahan
- Arun Prakash Ray
- Balram Shukla
- Dr. Kabeeruddin Khan Warsi
- Dr. Shamim Munemi
- Faiz Ali Shah
- Farhat Ehsas
- Iltefat Amjadi
- Jabir Khan Warsi
- Junaid Ahmad Noor
- Kaleem Athar
- Khursheed Alam
- Mazhar Farid
- Meher Murshed
- Mustaquim Pervez
- Qurban Ali
- Raiyan Abulolai
- Rekha Pande
- Saabir Raza Rahbar Misbahi
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