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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

संत साहित्य-श्री परशुराम चतुर्वेदी

कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह मात्र समझा जाता था और सर्व साधारण की दृष्टि में इसे हिंदी-साहित्य में कोई विशिष्ट पद पाने का अधिकार नहीं था। किंतु संत साहित्य को विचार-पूर्वक अध्ययन एवं अनुशीलन करने पर यह बात एक प्रकार से नितांत निराधार सिद्ध… continue reading

लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी- मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।

दफ़्तर-ए-शो’रा में जिस पसंदीदा निगाह से लिसानुल-ग़ैब शम्सुद्दीन मोहम्मद हाफ़िज़ शीराज़ी अ’लैहिर्रहमा का कलाम  देखा जाता है उसका उ’श्र-ए-अ’शीर भी किसी बड़े से बड़े सुख़नवर के कलाम को नसीब नहीं हुआ। लारैब आपके दीवान का एक एक शे’र ख़ुम-ख़ाना-ए-फ़साहत और मयकदा-ए-बलाग़त की किलीद है। अल्लाह तआ’ला की मा’रिफ़त और तौहीद की झलक जो आपके कलाम… continue reading

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़-अबुल-आज़ाद ख़लीक़ी देहलवी

ये किसी तअ’स्सुब की राह से नहीं  बल्कि हक़्क़ुल-अम्र और कहने की बात है कि हिन्दुस्तान की ख़ुश-नसीब सरज़मीन तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और हुस्न-ए-मुआ’शरत के लिहाज़ से जैसी भी कुछ थी वो बहुत अच्छी सही लेकिन जिन पैरों तले आकर ये रश्क-ए-आसमान बनी और जिन हाथों से इसका निज़ाम दुरुस्त हुआ, जिन दिमाग़ी फ़ुयूज़ से यहाँ आ’म… continue reading

हज़रत ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी- ख़्वाजा हसन सानी निज़ामी

ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान, हज़रत ख़्वाजा अजमेरी रहमतुल्लाहि अलै’ह हिन्दुस्तान में भेजे हुए आए थे।वो नाइब-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलै’हि-व-सल्लम और अ’ता-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलै’हि-व-सल्लम हैं। सरकार-ए-दो-आ’लम सल्लल्लाहु अलै’हि-व-सल्लम के रुहानी इशारे और हुक्म पर उन्होंने हमारी इस धरती के भाग्य जगाए लेकिन उनके जानशीन हज़रत ख़्वाजा क़ुतुब  रहमतुल्लाहि अलै’ह का दम क़दम, हम दिल्ली वालों की मोहब्बत और अ’क़ीदत का… continue reading

अलाउल की पद्मावती-वासुदेव शरण अग्रवाल

मलिक मुहम्मद जायसी कृत पद्मावत की व्याख्या लिखते हुए मेरा ध्यान पद्मावत के अन्य अनुवादों की ओर भी आकृष्ट हुआ। उनमें कई फ़ारसी भाषा के अनुवाद विदित हुए। किन्तु एक जिसकी और हिन्दी जगत का विशेष ध्यान जाना चाहिए वह बंगाली भाषा में किया हुआ वहाँ के प्रसिद्ध मुसलमान कवि अलाउल का अनुवाद है। यह… continue reading