online casino india

Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

गीता और तसव्वुफ़-मुंशी मंज़ूरुल-हक़ कलीम

हिन्दुस्तान जिस तरह तमद्दुन-ओ-मुआ’शरत में दूसरी मोहज़्ज़ब क़ौमों का गुरू था उसी तरह वो रूहानियत में भी कमाल पर पहुंचा हुआ था।श्री कृष्ण जी की गीता उस ज़र्रीं अ’ह्द की बेहतरीन याद-गार है। गीता महा-भारत मुसन्निफ़ा वेद व्यास के भीष्म पर्व का जुज़्व है।उस में अठारह बाब और सात सौ मंत्र हैं जिनमें वो उसूल-ओ-नसीहतें… continue reading

उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में-मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी

दूसरे मशाहीर-ए-अ’हद-ए-मुग़लिया की तरह उ’र्फ़ी भी संस्कृत या हिन्दी ज़बान न जानता था।लेकिन हिंदूओं के रस्म-ओ-रिवाज और उनके अ’क़ाइद के मुतअ’ल्लिक़ आ’म बातों से वाक़िफ़ था।चुनाँचे उसने अपने अश्आ’र में जा-ब-जा अहल-ए-हिंद के रुसूम की तरफ़ इशारा किया है।और ये दिल-फ़रेब किनाए ज़्यादा-तर उसके ग़ज़लियात के मज्मूआ’ में पाए जाते हैं। ब-हैसियत-ए-इन्सान उ’र्फ़ी की हक़ीक़ी… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -3

एक सूफ़ी का अपना ख़च्चर ख़ादिम-ए-ख़ानक़ाह के हवाले करना और ख़ुद बे-फ़िक्र हो जाना(दफ़्तर-ए-दोम) एक सूफ़ी सैर-ओ-सफ़र करता हुआ किसी ख़ानक़ाह में रात के वक़्त उतर पड़ा। सवारी का ख़च्चर तो उसने अस्तबल में बाँधा और ख़ुद ख़ानक़ाह के अंदर मक़ाम-ए-सद्र में जा बैठा। अह्ल-ए-ख़ानक़ाह पर वज्द-ओ-तरब की कैफ़ियत तारी हुई फिर वो मेहमान के… continue reading

मसनवी की कहानियाँ -2

एक गँवार का अंधेरे में शेर को खुजाना (दफ़्तर-ए-दोम) एक गँवार ने गाय तबेले में बाँधी। शेर आया और गाय को खा कर वहीं बैठ गया। वो गँवार रात के अंधेरे में अपनी गाय को टटोलता हुआ तबेले पहुंचा और अपने ख़याल में गाय को बैठा पाकर शेर के हाथ पैर पर, कभी पीठ और… continue reading

फ़िरदौसी-अज़ सय्यद रज़ा क़ासिमी साहिब हुसैनाबादी

ताज़ा ख़्वाही दाश्तन गर दाग़-हा-ए-सीनः रा गाहे-गाहे बाज़ ख़्वाँ ईं क़िस्सा-ए-पारीनः रा अबुल-क़ासिम मंसूर, सूबा-ए-ख़ुरासान के इब्तिदाई दारुस्सुल्तनत तूस में सन 935 ई’स्वी में पैदा हुआ था। उसके बाप का नाम इस्हाक़ बिन शरफ़ था जो सूबा-दार-ए-तूस मुसम्मा अ’मीद की एक जाएदाद का मुहाफ़िज़ था। उस मिल्कियत का नाम फ़िरदौस था।इसी रिआ’यत से अबुल-क़ासिम ने अपना तख़ल्लुस फ़िरदौसी… continue reading