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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनइ’मी

सूबा-ए-बिहार का दारुस्सुल्तनत अ’ज़ीमाबाद न सिर्फ़ मआ’शी-ओ-सियासी और क़दीमी लिहाज़ से मुम्ताज़ रहा है बल्कि अपने इ’ल्म-ओ-अ’मल, अख़्लाक़-ओ-इख़्लास, अक़्वाल-ओ-अफ़्आ’ल, गुफ़्तार-ओ-बयान और मा’रिफ़त-ओ-हिदायात से कई सदियों को रौशन किया है। यहाँ औलिया-ओ-अस्फ़िया की कसरत है। बंदगान-ए-ख़ुदा की वहदत है। चारों जानिब सूफ़ियों की शोहरत है।वहीं अहल-ए-दुनिया के लिए ये जगह निशान-ए-हिदायत है। चौदहवीं सदी हिज्री में बिहार के मशाइख़ का अ’ज़ीम कारनामा ज़ाहिर… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान ‘हम्द’ काकवी

कमालाबाद उ’र्फ़ काको की क़दामत के तो सब क़ाएल हैं।आज से 700 बरस क़ब्ल मुस्लिम आबादी का आग़ाज़ हुआ। इस तरह तवील अ’र्सा में ना जाने कितने मशाएख़ और दानिश-मंद गुज़रे जिनके मज़ारात आज भी काको के मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर शिकस्ता-हाल में मौजूद हैं। काको में चंद ऐसे ख़ानदान भी मौजूद हैं जो तक़रीबन 250 बरस से आबाद हैं।उन्हीं… continue reading

ज़िक्र ए खैर हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली इस्लामपुरी

बिहार की सर-ज़मीन हमेशा से मर्दुम-ख़ेज़ रही है। न जाने कितने इल्म ओ अदब और फ़क़्र ओ तसव्वुफ़ की शख़्सियत ने जन्म लिया है। उन्हीं में एक नाम हज़रत सय्यद अलीमुद्दीन दानिश-मंद गेसू दराज़ का है । वो  शहर ए नेशापुर (ईरान) से मुंतक़िल हो कर हिन्दुस्तान में बिहार शरीफ़ (नालंदा) में हज़रत मख़दूम ए… continue reading

ज़िक्र ए ख़ैर हज़रत हसन जान अबुल उलाई शहसरामी

हमारे सूबा ए बिहार में शहसराम को ख़ास दर्जा हासिल है।यहाँ औलिया ओ अस्फ़िया और शाहान ए ज़माना की कसरत है। इस बात से किसी को इंकार नहीं कि शहसराम की बुलंदी शेर ख़ाँ सूरी (1545) से है। देखने वालों ने देखा है कि बड़े नव्वाबीन और शाहान ए ज़माना हुक्मरानी कर के ख़ाक नशीन… continue reading

दानापुर- सूफ़ियों का मस्कन

इन्सान जिससे मोहब्बत करता है फ़ितरी तौर पर उसका ज़िक्र ज़्यादा करता है।वो चाहता है कि जिन महासिन और ख़ूबियों से मैं वाक़िफ़ हूँ दूसरे भी वाक़िफ़ हों ताकि वो खूबियाँ अपने अंदर पैदा करने की कोशिश करें।इसी जज़्बा के तहत ख़ानवादा साजदिया अबुल उलाइया, दानापुर और उनके  अज्दाद-ए-किराम कई दहाइयों से अपने औलिया-ए-किराम की… continue reading