ज़िक्र-ए-ख़ैर हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनइ’मी

सूबा-ए-बिहार का दारुस्सुल्तनत अ’ज़ीमाबाद न सिर्फ़ मआ’शी-ओ-सियासी और क़दीमी लिहाज़ से मुम्ताज़ रहा है बल्कि अपने इ’ल्म-ओ-अ’मल, अख़्लाक़-ओ-इख़्लास, अक़्वाल-ओ-अफ़्आ’ल, गुफ़्तार-ओ-बयान और मा’रिफ़त-ओ-हिदायात से कई सदियों को रौशन किया है। यहाँ औलिया-ओ-अस्फ़िया की कसरत है। बंदगान-ए-ख़ुदा की वहदत है। चारों जानिब सूफ़ियों की शोहरत है।वहीं अहल-ए-दुनिया के लिए ये जगह निशान-ए-हिदायत है। चौदहवीं सदी हिज्री में बिहार के मशाइख़ का अ’ज़ीम कारनामा ज़ाहिर हुआ।उनमें ख़ानक़ाह-ए-मुनई’मिया क़मरिया, मीतन घाट पटना सीटी के मा’रूफ़ सज्जादा-नशीन हज़रत मौलाना सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्ददीन हुसैन क़मरी अल-मुनइ’मी की  पाकीज़ा शख़्सियत नुमायाँ शान की हामिल है। आप बिहार की ख़ानक़ाह के उन चंद बुलंद-पाया सज्जाद-गान-ए-ज़ीशान में से एक हैं जिन पर इस सर-ज़मीन को बजा तौर पर नाज़ है।

हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन 1266 हिज्री में पैदा हुए। आप अपने भाईयों में मँझले थे। कम-सिनी में आपके वालिद-ए-माजिद हज़रत सय्यद शाह मुबारक हुसैन (मुतवफ़्फ़ा 1273 हिज्री) का इंतिक़ाल हुआ। इसलिए आपकी परवरिश-ओ-पर्दाख़्त ख़ानवादा के मुक़्तदिर बुज़ुर्गान-ए-उ’ज़्ज़ाम नीज़ बिरादर-ए-अकबर हज़रत हाफ़िज़ सय्यद शाह मुनीरुद्दीन हुसैन (मुतवफ़्फ़ा 1287  हिज्री) के ज़रिआ’ होती रही। ज़माना-ए-तुफ़ूलियत ही से आपकी शख़्सियत ज़ाहिर होने लगी थी। ख़ानदानी रविश के परतव और अस्लाफ़ के पैरव-कार होते चले गए। कम उ’म्र ही से कुछ कर जाने का जज़्बा और वलवला आपके अंदर मौजूद था। ख़ानवादा-ए-आ’लिया के अफ़राद हों या सिलसिला-ए-तरीक़त के शह-सवार  दोनों जगह आप क़द्र की निगाहों से देखे जाते। आपके औसाफ़-ओ-कमालात का दाएरा काफ़ी वसीअ’ है। राक़िमुल-हुरूफ़ सिर्फ़ चंद ज़ाहिरी औसाफ़-ओ-कमालात को जम्अ’ कर के हदिया-ए-तबरीक पेश करना चाहता है। क्योंकि अपने अस्लाफ़ के औसाफ़-ए-जमीला और अल्ताफ़-ए-हमीदा का तज़्किरा करना बाइ’स-ए-ख़ैर-ओ-बरकत है।

ज़रा सँभल कर फ़क़ीरों पे तब्सिरा करना

ये सूखी नदी से भी पानी निकाल देते हैं

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दन हुसैन के वालिद हज़रत शाह मुबारक हुसैन(मुतवफ़्फ़ा1273 हिज्री और जद्द-ए-अमजद हज़रत सय्यद शाह क़मरुद्दीन हुसैन (मुतवफ़्फ़ा 1255 हिज्री) अ’ज़ीमाबाद में यकता-ए-रोज़-गार और अ’दीमुल–मिसाल बुज़ुर्ग गुज़रे हैं। अ’ज़ीमाबाद की सर-ज़मीन पर उस ख़ानवादा के फ़क़्र का सिक्का बहुत बुलंद है।कुन्दन को सोना बनाना, ज़मीन को मिस्ल-ए-आसमान करना ये उस ख़ानवादा का ख़ास्सा रहा है। तारीख़ अ’ज़ीमाबाद में उस ख़ानवादे का एक रौशन बाब है ।

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन का ख़ानवादा हसब-ओ-नसब के लिहाज़ से काफ़ी बुलंद है। यहाँ आपका पिदरी नसब-नामा दर्ज किया जाता है।

सय्यद अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन इ’ब्न-ए-मुबारक हुसैन इब्न-ए-क़मरुद्दीन हुसैन,इब्न-ए-शम्सुद्दीन हुसैन इब्न-ए-वलीउल्लाह इब्न-ए-मोहम्मद यासीन इब्न-ए-मोहम्मद बासिर इब्न-ए-मोहम्मद हुसैनी इब्न-ए-औलिया इब्न-ए-सद्र-ए-जहाँ इब्न-ए-क़ुतुबुद्दीन इब्न-ए-तक़ीउद्दीन बड़े इब्न जलालुद्दीन इब्न मोहम्मद कालपी इब्न-ए-जमालुद्दीन इब्न-ए-अ’लाउद्दीन इब्न-ए-ताज इब्न-ए-इस्माआई’ल इब्न-ए-इस्हाक़ लाहौरी इब्न-ए-दाउद इब्न-ए-या’क़ूब इब्न-ए-यूसुफ़ इब्न-ए-अ’ब्दुल्लाह इब्न-ए-हसन इब्न-ए-अबुल-क़ासिम इब्न-ए-इब्राहीम इब्न-ए-इस्माआई’ल इब्न-ए-हुसैन इब्न-ए-अ’ली रज़ा इब्न-ए-जा’फ़र ख़ुरासानी इब्न-ए-मोहसिन इब्न-ए-हाशिम इब्न-ए-अ’ब्दुल्लाह इब्न-ए-इमाम मोहम्मद बाक़र इब्न-ए-ज़ैनुल-आ’बिदीन इब्न-ए-इमाम हुसैन इब्न-ए-अ’ली मुर्तज़ा इब्न-ए-अबी तालिब करमुल्लाहु तआ’ला वज्हल-करीम। (तज़्किरतुल-किराम,स.677)

मज़्कूरा नसब-नामे में ऐसे-ऐसे पाकीज़ा नाम शामिल हैं कि उन नामों का विर्द भी बाइ’स-ए-बरकत है।

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन उ’लूम-ए-मुतदाविला में जब कामिल-ओ-अकमल हुए तो सिलसिला-ए-फ़क़्र की तरफ़ मुतवज्जिह हुए।आप को बचपन ही से हज़रत मख़दूम शाह मोहम्मद सज्जाद दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1298 हिज्र) की ज़ात से इत्तिहाद था।उन्हीं की सोहबत-ए-फ़ैज़ मंजिलत को इख़्तियार किया और ने’मत-ए-बातिनी से फ़ैज़-याब किया।हज़रत मख़दूम मोहम्मद सज्जाद ने आपके हिफ़्ज़-ओ-मरातिब में जिला-बख़्शी और सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया अबुल-उ’लाइया में बैअ’त करके मजाज़-ए-मुतलक़ फ़रमाया।

अकबर दानापूरी(मुतवफ़्फ़ा1327ह रक़म-तराज़ हैं :

“आप हज़रत सय्यद शाह के पोते और सज्जादा-नशीन हैं और जनाब हज़रत सय्यद शाह मुबारक हुसैन के फ़र्ज़न्द-ए-औसत हैं। साहिब-ए-निस्बत-ए-क़वीया-ओ-फ़हम–ए-सलीम हैं। चेहरे से आसार-ए-कैफ़ीयत-ओ-निस्बत पाए जाते हैं।आपको कम-उ’म्री से वालिद-ए-माजिद हज़रत सय्यद शाह मोहम्मद सजजाद से शरफ़-ए-बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त हासिल था और अब उस सज्जादा को आपकी ज़ात-ए-बा-बरकात से रौनक़ है।” (महबूब,स्38)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन को अपने पीर-ओ-मुर्शिद से बे-पनाह मोहब्बत थी।अक्सर सफ़र वग़ैरा में भी हज़रत पीर-ओ-मुर्शिद के हम-राह रहा करते थे।आपको हज़रत पीर-ओ-मुर्शिद से ऐसी निस्बत हुई कि सारी निस्बत वहाँ फीकी पड़ गई।

हज़रत शाह मोहम्मद कबीर अबुल-उ’लाई दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1329 हिज्री) लिखते हैं।

“और आख़िरी सफ़र-ए-हज आपका (हज़रत सज्जाद) 1296 हिज्री में हुआ। उस सफ़र में आपकी हम-रिकाबी में जनाब सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन भी थे कि साहिब-ज़ादे जनाब हज़रत सय्यद शाह फ़ख़्रुद्दीन हुसैन अल-मशहूर शाह मुबारक हुसैन बिन हज़रत सय्यद शाह क़मरुद्दीन हुसैन अ’ज़ीमाबादी और आपके ख़ुलफ़ा-ए-उ’ज़्ज़ाम से हैं और फैज़-बख़्श-ए-मस्नद-ए-इर्शाद हैं” (तज़्किरतुल-किराम, स. 711)

हज़रत शाह मोहम्मद यहया अबुल-उ’लाई अ’ज़ीमाबादी (मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री) ने आपके सफ़र-ए-हरमैन-ए-शरीफ़ैन पर क़ितआ’-ए-तारीख़ लिखा है।

अ’ज़ीज़ुल-लक़ब सय्यद-ओ-शाह-ए-मन

कि दारद ब-सर ताज-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना

मअ’ल-ख़ैर बाज़ आमदः अज़ अ’रब

नुमूदः अदा हज्ज-ए-बैत-ए-ख़ुदा

पस अज़ हज तवाफ़-ए-मज़ार-ए-रसूल

अदा कर्द बा-इ’श्क़-ओ-सिद्क़-ओ-सफ़ा

ब-तारीख़ गुफ़्तेम वक़्त-ए-क़ुदूम

कि ख़ुश-आमदी सय्यदी मर्हबा”

1296 हिज्री

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की कमाल-ए-मेहनत-ओ-मा’रिफ़त से उनके पीर-ओ-मुर्शिद हज़रत क़िब्ला-ओ-का’बा मख़दूम शाह मोहम्मद सज्जाद (मुतवफ़्फ़ा 1298 हिज्री) भी उनकी अज़्मत-ओ-रिफ़्अ’त के क़ाएल हो चुके थे। हज़रत मख़दूम सज्जाद हज़रत अ’ज़ीज़ को मुर्शिद-ज़ादे और मख़दूम-ज़ादे की निस्बत से भी क़द्र किया करते थे।

हज़रत सय्यद शाह ग़फ़ूर्रहमान क़ादरी अबुल-उ’लाई हम्द काकवी (मुतवफ़्फ़ा 1357) हिज्री लिखते हैं :

“जनाब सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन अ’लैहिर्रहमत क़रीब में आपके बैठे हुए थे और ये मुर्शिद के पोते थे।एक मर्तबा का चश्म-दीद वाक़िआ’ है कि मीर सज्जाद हुसैन मरमहूम (साकिन:मोहल्ला चक, इलाहाबाद) आपके मुरीद थे।हज़रत शाह क़मरुद्दीन अ’लैहिर्रहमा के उ’र्स में आए हुए थे। उस मज्लिस में ना-चीज़ भी हाज़िर था कि मीर ममदूह (मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हज़रत मख़दूम मोहम्मद सज्जाद दानापुरी) को कैफ़ियत आई और उस हालत में हुज़ूर के क़दम पर सर रख दिया ।हुज़ूर ने उनके सर को अपने हाथ से उठाकर पहलू में जनाब सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब थे उनके क़दम पर रख दिया” (आसार-ए-क़लमी)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की सज्जादगी के बा’द उनकी अहमियत में दो-बाला इज़ाफ़ा हो गया था।मुरीदान-ओ-मो’तक़िदान भी ब-कसरत हुए यहाँ तक कि उ’लमा भी आपकी ज़ात से मुतअस्सिर हो कर सोहबत के मुतलाशी हुए।ग़र्ज़ कि हज़रत मौलाना मोहम्मद हुसैन क़ादरी ‘रम्ज़’ हाजीपुरी (मुतवफ़्फ़ा 1343 हिज्री) का नाम उ’लमा-ए-बिहार के मुतहर्रिक उ’लमा में शुमार होता है। आपको ता’लीम-ओ-इर्शाद हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन से हासिल था।

चुनाँचे इस सिलसिले में हकीम सय्यद अहमदुल्लाह नदवी साहिब लिखते हैं।

“और जनाब सय्यद शाह मुनीरुद्दीन हुसैन-ओ-जनाब सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन सज्जादा नशीनान-ए-तकिया मीतन घाट पटना सीटी से ता’लीम पाते रहे”

(तज़्किरा-मुस्लिम शो’रा-ए-बिहार, जिल्द दोउम, स.78)

वक़्त हालात के तहत बदलते गए।लेकिन आप ज़माना के साथ मराहिल-ओ-मक़ामात तय करते चले गए और चौदहवीं सदी हिज्री के अवाएल ब-हैसियत सज्जादा-नशीन के ख़ासान-ओ-आ’मियान के दरमियान मा’रूफ़ हुए। हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन के अ’हद-ए-सज्जादगी में ख़ानक़ाह-ए-मुनई’मिया क़मरिया मीतन घाट को ख़ूब शोहरत मिली।आप अपने बिरादर-ए-अकबर हज़रत हाफ़िज़ सय्यद शाह मुनीरुद्दीन हुसैन के विसाल के बा’द 1287 हिज्री से ता-उ’म्र सज्जादा-नशीन रहे। आप उस सज्जादा पर तवील मुद्दत तक रौनक़ अफ़रोज़ रहे या’नी 36 बरस। नाम-ओ-नुमूद और उ’रूज-ओ-ए’तिलाअ’ से काफ़ी दूर रहे। हम-अ’स्र मशाएख़ में आपकी ज़ात रौशन थी।आपकी बुलंद शख़्सियत से मुतअस्सिर हो कर हज़रत शाह मोहम्मद अकबर दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1327 हिज्री) आप को

“इफ़्तिख़ारुल-इख़्वान,बिरादर-ए-वाला-शान सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन साहिब ज़ादल्लाहु इ’र्फानहु”

से याद फ़रमाते थे।

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन ने चौदहवीं सदी हिज्री के अवाइल में उ’लमा-ओ-सोलहा के दरमियान मोहब्बतों का चराग़ रौशन किया है।आप अहल-ए-सुन्नत की ख़िदमात-जलीला को ख़ूब शाए’-ओ-ज़ाए’ करते। उ’लमा के इख़्तिलाफ़ात-ओ-तनाज़ुआ’त, तकाफ़ुल-ओ-तग़ाफ़ुल और इफ़रात-ओ-तफ़रीत को मुत्मइन-ए-ख़ातिर करने के लिए क़ाज़ी अ’ब्दुल-वहीद फ़िरदौसी (मुतवफ़्फ़ा 1326 हिज्री)जो क़ाज़ी इस्माई’ल क़दीमी के नबीरा हैं राय-ओ-मश्वरा के बा’द अ’ज़ीमाबाद में अहल-ए-सुन्नत का अ’ज़ीम इज्लास मुनअ’क़िद किया।उसमें उ’लमा-ए-हिंद का एक बड़ा तबक़ा अ’ज़ीमाबाद में शामिल-ए-इज्लास हुआ। उनमें उलमा-ए-बदायूँ, बरैली, रामपुर, इलाहाबाद वग़ैरा से मख़्सूस जमाअ’त अ’ज़ीमाबाद तशरीफ़ फ़रमा हुए तहफ़्फ़ुज़-ए-अक़ाइ’द की मुहिम ख़ासान-ओ-आ’मियान के दरमियान ख़ूब चल रही थी। उस मौक़ा’ पर उन पाकीज़ा तहरीकों का न सिर्फ़ आपने साथ दिया बल्कि मुआ’विन-ओ-मदद-गार होकर इज्लास के लिए अपनी ख़ानक़ाह से दरियाँ, तोशक, तकिए और शम्अ’-दान वग़ैरा तक भेजे ताकि हर हाल में इज्लास को कामयाब बनाया जा सके। उस मुबारक मौक़ा’ पर बेशतर उ’लमा-ओ-सोलहा के साथ ख़ुश अ’क़ीदगी की बहार देखने को आ’ला हज़रत मौलाना अहमद रज़ा ख़ान बरैलवी (मुतवफ़्फ़ा 1340 हिज्री) भी अ’ज़ीमाबाद तशरीफ़ लाए।

हज़रत रज़ा  बरैलवी अपने अ’रबी क़सीदा “आमालुल-अबरार वल-आलामुल-अशरार” में यूँ ज़िक्र-ए-अ’ज़ीज़ करते हैं-

“अ’ज़ीज़ुद्दीन ज़ा-इ’ज़्ज़ युसव्वदु”(स.12)

दूसरी जगह हज़रत हसन बरैलवी ने फ़ारसी मस्नवी “समसाम-ए-हसन …”  में कहते हैं

“शाह इस्माई’ल-ओ-अ’ज़ीज़-ओ-अमीर” (स.40)

इसी सिलसिले में हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन की तहरीर ”मक्तूबात-ए-उ’लमा-ओ-कलाम-ए-अहल-ए-सफ़ा” में भी दर्ज है :

“तहरीर जनाब मौलाना सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन साहिब क़मरी अबुल-उ’लाई

ज़ेब-ए-सज्जादा क़मरिया अ’ज़ीमाबाद

चूँकि मैं हनफ़ीउल-मज़हब हूँ और ये नदवा इज्तिमाअ’-ए-मज़ाहिब-ए-मुख़्तलिफ़ा से क़ाएम किया गया है लिहाज़ा मैं इस के ख़िलाफ़ हूँ”

(मक्तूबात-ए-उ’लमा-ओ-कलाम-ए-अहल-ए-सफ़ा, स.82)

मज़्कूरा बातें मक्तूबात-ए-उ’लमा-ओ-कलाम-ए-अहल-ए-सफ़ा के अ’लावा दूसरे मुख़्तलिफ़ रसाएल में भी मिलतीं हैं। वहीं दूसरी तरफ़ रिसाला ‘तहदीदुन्नद्वा’ के सफ़हा नंबर 10 पर, ‘दरबार-ए-हक़-ओ-हिदायत’ के सफ़हा 5/161 पर और ‘फ़क्क-ए-फ़ित्ना अज़ बिहार-ओ-पटना’ के सफ़हा पर भी हज़रत का नाम-ए-नामी और तज़्किरा-ए-गिरामी शामिल-ए-किताब है।

हज़रत शाह नसीरुल-हक़ चिश्ती सज्जादा-नशीन ख़ानक़ाह-ए-चिश्तिया नव-आबाद ख़ुर्द, हरदास बीघा ज़िला पटना भी हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन के शाना ब-शाना फ़रमाते हैं

“मैं जनाब शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन का हम-ज़बान हूँ ” (मक्तूबात-ए-उलमा-ओ-कलाम अहल-ए-सफ़ा, स.100)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की आ’लिमाना शख़्सियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है उनकी महफ़िल में इक्तिसाब-ए-फ़ैज़ करने वाले अफ़राद सिर्फ़ आ’लिम-ए-दीन और फ़ाज़िल-ए-मतीन ही नहीं बल्कि मुख़्तलिफ़ औसाफ़-ओ-कमालात के अफ़राद भी कमाल-ए-अ’क़ीदत-मंदी से हाज़िर हुआ करते थे।

इस्लाह-ए-नदवा तहरीक के अफ़राद हों या सर सय्यद अहमद खाँ की ता’लीमी बे-दारी से मुतअस्सिर- शुदा अफ़रा-ओ-हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की सोहबत से माला-माल रहे हैं। मुआ’सिर उ’लमा-ओ-मशाइख़ आप को

“क़ुतुबुल-अक़ताब-ओ-ग़ौस-ए-दौराँ-ओ-पेशवा-ए-सालिकान-ओ-हादी-ए-गुमराहान महबूब-ए-ख़ुदा, आ’लिम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी,मरजा’-ए-ख़लाइक़ जनाब मौलाना मौलवी सय्यद शाह मोहम्मद अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब अबुल-उ’लाई दाम-ए-बरकातहु मोहल्ला मीतन घाट अ’ज़ीमाबाद” से याद किया करते थे।(दाफ़िउ’ल मुहिम्मात)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुख़्तलिफ़ ख़ूबियों के मालिक थे।वो एक बेहतर आ’लिम-ए-दीन, फ़ाज़िल-ए-मतीन, साहिब-ए-सिद्क़-ओ-यक़ीन, बुज़ुर्गों के अमीन, शे’र-ओ-सुख़न के शौक़ीन, उ’लमा-ए-अहल-ए-सुन्नत के मुआ’विनीन और ख़ानक़ाह-ए-मुनई’मिया क़मरिया मीतन घाट ,पटना सीटी के मा’रूफ़ सज्जादा-नशीन थे।

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन हनफ़ीउल-मज़हब, मुन्इ’मी क़मरी मशरब और रिज़वीउन्नसब बुज़ुर्ग थे।

सय्यद बदरुल-हसन (मुतवफ़्फ़ा 1354 हिज्री उनकी शक्ल-ओ-शबाहत, औसाफ़-ओ-कमालात के ऐ’नी शाहिद हैं। हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन पर तब्सिरा करते हुए लिखते हैं:

“राक़िम ने इस गद्दी पर शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन को देखा था। वाक़ई’ जवान सालिह थे और फ़क़ीरी की शान उनमें देखा। सीधे साधे नेक मिज़ाज, साहिब-ए-दिल, बा- अख़्लाक़,पुर-कैफ़ आदमी थे” (यादगार-ए-रोज़गार, स.1224)

हज़रत अ’ज़ीज़ को शे’र-ओ-सुख़न से रग़बत रही है। वो शे’र-ओ-सुख़न के शौक़ीन ही नहीं बल्कि दिल-दादा थे।उनकी ग़ज़लें, ना’त, क़ितआ’त-ओ-रुबाइ’यात वग़ैरा ख़ानक़ाह-ए-मुनई’मिया क़मरिया के कुतुब-ख़ाना में मौजूद हैं ।जानना चाहिए कि हज़रत अ’ज़ीज़ के दस्त-ए-ख़ास का नविश्ता

(1) रिसाला-ए-फ़ना-ओ-बक़ा (अज़ हज़रत सय्यदिना अमीर अबुल-उ’ला)

(2) रिसाला-ए-मुर्शिदिया (अज़ हज़रत सय्यद क़मरुद्दीन हुसैन)

(3)  रिसाला-ए-जवाहरुल-अनवार (अज़ हज़रत सय्यद क़मरुद्दीन हुसैन)

भी ख़ानक़ाह-ए-मुनई’मिया क़मरिया के कुतुब-ख़ाने की ज़ीनत हैं ।

हज़रत शाह मोहम्मद यहया अबुल-उ’लाई अ’ज़ीमबादी (मुतवफ़्फ़ा 1302 हिज्री की रेहलत पर आपका एक क़ितआ’-ए-तारीख़ फ़ुतूहात-ए-शौक़ में दर्ज है।

“क़ितआ’-ए-तारीख़ सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन साहिब दा-म फ़ैज़हु ख़लफ़ुस्सिदक़ मीर मुबारक हुसैन

शाह यहया ब-फ़क़्र-ओ-ज़ुह्द-ओ-वरा’

शुद चूँ ज़िंद: हनूज़ ज़ात-ए-क़दम

तीर:ए ब-नमूद आ’लम-ए-फ़ानी

दीदः-ए-दिल शुद अज़ ग़ममश पुर-नम

यकसर अज़ मौत-ए-आँ ख़जिस्त:-सिफ़ात

दफ़्तर-ए-नज़्म-ओ-नस्र शुद बरहम

ब-तुफ़ैल-ए-जनाब-ए-रुक्नुद्दीन

याफ़्त ने’मत ज़े-मुन्इ’म-ए-आ’लम

क़मरी-ओ-अबुल-उ’लाई बूद

बरकात-ओ-फ़ुयूज़ दाश्त अतम

अज़-मुबारक हुसैन क़ुतुब-ए-ज़माँ

निस्बत-ए-फ़क़्र दाश्त ऊ लिहिकम

या इलाही ब-हक़-ए-आल-ए-अ’बा

नज़रे कुन ब-ऊ ज़े-लुत्फ़-ओ-करम

ब-दुआ-ए’-अ’ज़ीज़  कुन यारब

हश्र ब-अहमद-ए-शफ़ीअ’-ए’-उमम

पय-ए-तारीख़-ए-आँ वली-ए-ख़ुदा

‘आ’शिक़-ए-ख़ास बुल-उ’ला गुफ़्तम

1302 हिज्री

(फ़ुतूहात-ए-शौक़, स.556)

हज़रत अ’ज़ीज़  की लिखी हुई एक ग़ज़ल भी मिलती है, मुलाहिज़ा हो:

पुत्ले में आया ख़ाक के आदम कहा गया

जल्वा हर एक रंग में हमको दिखा गया

तौहीद का सबक़ हमें उसने पढ़ा दिया

पर्दा था इक ख़ुदी का सो वो भी उठा गया

आख़िर जुनून-ए-इ’श्क़ ने क्या-क्या किया सुलूक

सब उस्तुख़्वान और रग-ओ-पा को जला गया

थी आरज़ू यही कि कोई घोंट हो नसीब

वो ख़ुम का ख़ुम मुझे मय-ए-वहदत पिला गया

क़ातिल बना है आप और मक़्तूल है वही

मंसूर बन के आपको सूली चढ़ा गया

जिसको तलाश करता है तू कू-ब-कू अ’ज़ीज़

अब देख हर बशर में वो आ के समा गया

(वज़ाइफ़ुल-आ’रिफ़ीन, स.63)

हज़रत सय्यद शाह अ’ता हुसैन मुनइ’मी फ़ानी(मुतवफ़्फ़ा1311 हिज्र)रक़म-तराज़ हैं :

“दोउमी सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन कि ईं नीज़ दर इ’ल्म-ए-अ’रबी-ओ-फ़ारसी हैसियत दारंद वाफ़िर बैअ’त-ए-ईशाँ रा हस्त अज़ उम्मुल-अस्ग़र सय्यद शाह मोहम्मद सज्जाद मस्नद-नशीन-ए-इर्शाद” (कंज़ुल-अंसाब, स.319)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन का हल्क़ा-ए-मुरीदान-ओ-मो’तक़िदान भी हुआ।आपने बा’ज़ अफ़राद को इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से भी मुशर्रफ़ फ़रमाया है।

हज़रत सय्यद शाह रज़ीउद्दीन हुसैन मुनइ’मी: आपको बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त हज़रत मख़दूम शाह से  हासिल थी। नीज़ ता’लीम-ओ-ईर्शादात बिरादर-ए-औसत हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन से हासिल थी। हज़रत अ’ज़ीज़ की रेहलत के बा’द आप ही जा-नशीन-ओ-सज्जादा-नशीन हुए।

हज़रत सय्यद शाह तक़ीउद्दीन हुसैन मुन्इ’मीः- आपको बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त नीज़ ता’लीम-ओ-इर्शादात-ए-कुल हक़ीक़ी अ’म्म-ए-गिरामी हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन से हासिल थी। आप हज़रत रज़ीउद्दीन हुसैन के फ़र्ज़न्द-ए-रशीद थे।इस तरह आप हज़रत अ’ज़ीज़ के बिरादर-ज़ादा भी हुए। हज़रत रज़ीउद्दीन हुसैन के बा’द आप ही ख़ानक़ाह-ए-मुनइ’मिया क़मरिया मीतन घाट के सज्जादा हुए।

सय्यद मंज़ूर इमाम: आपको बैअ’त सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया अबुल-उ’लाईया में हासिल है। आपको अपने पीर-ओ-मुर्शिद से पाँच तरीक़ों में इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त भी हासिल है सिलसिला-ए-नक़्शबंदिया, अबुल-उ’लाईया,चिश्तिया,क़ादरिया,फ़िरदौसिया और मदारिया।

(सफ़ीना हज़रत अ’ज़ीज़, मख़्ज़ूना कुतुब-ख़ाना ख़ानक़ाह-ए-मुन्इ’मिया क़मरिया)

क़ाज़ी सय्यद रज़ा हुसैन:आप शहर-ए-अ’ज़ीमाबाद की रौनक़ थे। आपको बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त हज़रत अमीर अबुल-हसन मुनइ’मी  (मुतवफ़्फ़ा 1288 हिज्री)से था। साल-ए-रेहलत 1309 हिज्री है। मौलवी सय्यद अ’ब्दुल ग़नी (मुतवफ़्फ़ा 1338 हिज्री)लिखते हैं कि

“अक्सर सज्जादा-नशीनों से उनको पूरा ख़ुलूस और सच्चा रूहानी तअ’ल्लुक़ था जिसमें ख़ुसूसियत के साथ जनाब सय्यद शाह मियाँ जान साहिब, जनाब सय्यद शाह मोहम्मद यहया, शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब, शाह हिफ़ाज़त हुसैन साहिब का तज़्किरा ज़रूरी है ”

(क़ाज़ी सय्यद रज़ा हुसैन, स.84)

मुंशी हसन अ’ली क़ाज़ी सय्यद रज़ा हुसैन को हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन से बे-पनाह क़लबी रब्त था। यही वजह रही कि उन्होंने मुंशी हसन अ’ली (मुतवफ़्फ़ा 1314 हिज्री) को जो मा’रूफ़ वाइ’ज़-ओ-मुसन्निफ़ थे,  हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन से बैअ’त कराई।

चुनाँचे डॉक्टर मुज़फ़्फ़र इक़्बाल लिखते हैं :

“उन्हें एक मुर्शिद-ए-कामिल की तलाश हुई और उन्होंने अपने हम-दम क़ाज़ी रज़ा हुसैन साहिब से मश्वरा किया। क़ाज़ी साहिब ने उन्हें अपने पीर-ओ-मुर्शिद सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब क़मरी अबुल-उ’लाई की तरफ़ रुजूअ’ किया।चुनाँचे वो मुरीद हो गए और मुर्शिद ने रोज़-ए-अव्वल सनद-ए-ख़िलाफ़त भी इ’नायत फ़रमाई” (बिहार में उर्दू नस्र का इर्तिक़ा, स.108)

जानना चाहिए कि मुंशी हसन अ’ली बा’द में क़ादयानी जमाअ’त की तरफ़ मुतवज्जिह हो गए थे।

हज़रत मख़्दूम शाह मोहम्मद सज्जाद दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1298 हिज्री)के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा या’नी आपके पीर भाई हज़रत शाह मोहम्मद इदरीस चिश्ती साजिदी (मुतवफ़्फ़ा 1354 हिज्री )को बा’ज़ औराद-ओ-वज़ाइफ़ की इजाज़त हासिल है। (दाफ़िउ’ल-मुहिम्मात, स. 12)

हज़रत इदरीस सीरदा अ’ज़ीमाबादी फ़रमाते हैं :

हज़रत अ’ज़ीज़ जो थे हर-दिल अ’ज़ीज़

ग़ौर कर देख वो पेश-ए-नज़र निकला

(दीवान-ए-सीरदा, स.4)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन दो ख़ास मुरीद बा-इख़्तिसास का ज़िक्र सय्यद बदरुल-हसन साहिब ने अपनी किताब ‘यादगार-ए-रोज़गार में किया है:

“डॉक्टर ईसारुल-हक़ के दो लड़के थे एक का नाम प्यारे मियाँ दूसरे लड़के का नाम नब्बा मियाँ है। ये दोनों हनूज़ ज़िंदा हैं। इन लोगों को मुरीदी का तअ’ल्लुक़ मीतन घाट में ख़ानक़ाह-ए-शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन मरहूम से था” (स.363)

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन का निकाह 1292 हिज्री में अ’लीगंज सीवान के जनाब शैख़ ग़ुलाम समदानी साहिब की साहिब-ज़ादी से हुआ था।हज़रत अ’ज़ीज़ के साथ उनके दो छोटे भाई हज़रत शाह शरफ़ुद्दीन हुसैन रिज़वी और हज़रत शाह रज़ीउद्दीन हुसैन का अ’क़्द भी इसी मौक़ा’ पर हुआ था। वाज़ेह हो की हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन और हज़रत शाह शर्फ़ुद्दीन दोनों का निकाह दुख़्तरान-ए-शैख़ ग़ुलाम समदानी से हुआ और हज़रत शाह रज़ीउद्दीन का अ’क़्द हज़रत शाह अ’ली हुसैन दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1299 हिज्री)की साहिब-ज़ादी से हुआ। उस पुर-मुसर्रत मौक़ा’ पर हज़रत शाह यहया अ’ज़ीमाबादी ने पाँच मुख़्तलिफ़ क़ितआ’त लिखे हैं।

क़ितआ’-ए-अव्वल का पहला मिसरा’ यूं था :

(कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.171)

क़ितआ’-ए-दोउम

चूँ अ’ज़ीज़ुद्दीन-ओ-शर्फ़ुद्दीन रज़ीउद्दीन-ए-मा

कद-ख़ुदा गश्तः अज़ अफ़्ज़लुस्सुल्तान-ए-हिजाज़

दर दुआ’ तारीख़ इंशा साख़्तम बाजान-ए-शाद   

हर सेह साहिब-ज़ादा रा यारब अ’ता फ़र्ज़ंद साज़

1291 हिज्री

(कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.171)

क़ितआ’-ए-सेउम का पहला शे’र

सेह साहिब-ज़ादा गर्दीदंद अज़ फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा नौशाह

मुबारक-बाद इलाही हर यक्सर ख़ानः आबाद

1292 हिज्री

(कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.171)

क़ितआ’-ए-चहारुम

शुद अंजाम सेह शादी बा-कमाल-ए-जश्न-ओ-आराइश

ब-दौलत ख़ानः-ए-मौला-ए-मन बर ख़ालिक़-ए-अकरम

बहर सेह नौशः-ए-दह्र ब-फ़रज़न्दान-ए-करामत कज़

कि गिर्द-ए-ख़ातिर-ए-मिस्कीन–ए-यहया ख़ुर्रमे बीनम

 (कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.171)

क़ितआ’-ए-पंजुम का पहला शे’र

अ’ज़ीज़ुद्दीन-ओ-शरफ़ुद्दीन रज़ीउद्दीन नौशा

इलाही तीनों भाई के ख़ाना आबाद

 (कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.172)

मज़्कूरा कितआ’-ए-तारीख़ हज़रत यहया  अ’ज़ीमाबादी की किताब ‘कंज़ुत्तवारीख़ में मौजूद है।इस किताब का क़लमी नुस्ख़ा ख़ुदा बख़्श ख़ाँ ओरीएंटल पब्लिक लाइब्रेरी के शो’बा-ए-फ़ारसी मख़्तूतात में महफ़ूज़ है ।

आपको एक फ़रज़न्द सय्यद मोहम्मद रमज़ान अ’ली हुए ।जिसका साल-ए-विलादत 1293 हिज्री है । हज़रत यहया  अ’ज़ीमाबादी ने उसका क़ितआ’-ए-तारीख़ कहा है:-

“तारीख़-ए-साहिब-ज़ादा हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन साहिब

“ब-फरज़न्द-ए-मुबारक इब्न-ए-अ’ज़ीज़ मुबारक बाद”

1293 हिज्री

क़ितआ’-ए-अव्वल

ब-पिसर-ए-मा अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन हक़ पिसर दाद-ओ-ख़ातिरम ब-शगुफ़्त

मुल्हिम-ए-ग़ैब दर सेह यहया

नाम-ओ-सालश ‘ग़ुलाम हैदर’ गुफ़्त

1293 हिज्री

क़ितआ’-ए-दोउम

ब-जनाब-ए-अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन

कर्द यज़्दाँ अ’ता नरीना पिसर

गुफ़्त साल-ए-विलादतश यहया

‘बारकल्लाहु बि-नूरिशम्स-ओ-क़मर’

1293 हिज्री

क़िताआ’-ए-सेउम

फ़र्ज़न्द-ए-अर्जुमंद जनाब-ए-अ’ज़ीज़ुद्दीन

अनवार कुनद अज़ चराग़श सुतुअ’

यहया  नवाख़्त साल-ए-विलादत ब-लौह-पीर

माह-ए-अ’ज़ीज़ ‘गश्तः ब-राफ़े’ अ’ला तुलूअ’

1293 हिज्री

क़ितआ’-ए-चहारुम

आँ सय्यद शरीफ़ अ’ज़ीज़ुल-वजूद-ए-मा

चश्म-ओ-चराग़-ओ-रौशनी अफ़्ज़ा-ए-ख़ानदां

पाकीज़ः ख़ू ख़िज्सतः ख़िसाल-ओ-क़मर जमाल

दारद बस्तः निस्बत-ए-जद्द-ए-पिदर निहाँ

(कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.179)

आपकी दो साहिब-ज़ादी थीं। पहली साहिब-ज़ादी की पैदाइश पर भी हज़रत यहया अ’ज़ीमाबादी ने क़ितआ’ कहा है

“क़ितआ’–ए-तारीख़-ए-विलादत दुख़्तर-ए-नेक अख़्तर हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुवल्लदा राबिआ’ अ’ज़ीजः’

माद्दा-ए-दुख़्तर-ए-अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब”

1294 हिज्री

क़ितआ’-ए-अव्वल

ऐज़्द-ए-पाक अ’ज़ीज़ुद्दीन रा

दुख़्तर-ए-ज़ुहरः हुसैनी बख़्शीद

मिसरा’-ए-साल-ए-विलादत ईंस्त

बिन्त-ए-फ़र्ज़न्द मुबारक गर्दीद’

1294 हिज्री

(कंज़ुत्तवारीख़, क़लमी, स.190)

वाज़ेह हो कि हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की दोनों साहिब-ज़ादी मौला नगर मुंगेर के शाह साहिबान शाह काज़िम-ओ-शाह हातिम से ब्याही थीं।

हज़रत शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन की ज़िंदगी बिल-आ’ख़िर 56 बरस की उ’म्र में तमाम हुई। मुख़्तसर अल्फ़ाज़ में यही कहा जा सकता है कि ‘ज़िंदगी एक आह थी जिसे हज़रत अ’ज़ीज़ ने वाह में तब्दील कर दी’।

हज़रत सय्यद शाह मोहम्मद मोहसिन अबुल-उ’लाई दानापुरी (मुतवफ़्फ़ा 1364 हिज्री)अपने सफ़ीना में लिखते हैं:

“ब-रोज़-ए-जुमा’ ब-तारीख़–ए-सेउम माह-ए-रमज़ानुल-मुबारक बा’द-ए-मग़रिब जनाब अ’मवी सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन साहिब रेहलत फरमूदंद, इन्ना लिल्लाह व-इन्ना एलैहि राजिऊ’न’ (सफ़ीना हज़रत मोहसिन, मख़्ज़ूना कुतुब-ख़ाना ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया, दानापुर

3 रमज़ानुल-मुबारक 1323 हिज्री मुवाफ़िक़ 1905 ई’स्वी- तारीख़-ए-विसाल है।

हज़रत सय्यद शाह ग़फ़ूरुर्रहमान अबुल-उ’लाई हम्द  काकवी  (1357 हिज्री) ने क़ितआ’-ए-तारीख़-ए-रेहलत कही है।

“क़ितआ’-ए-तारीख़-ए-रेहलत”

सय्यद शाह मोहम्मद अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन साहिब अ’ज़ीमाबादी’

सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन आ’ली नसब

आ’रिफ़-ओ-हम-नाजी–ओ-हम सूफ़ी-ओ-सुन्नी-मिलल

ख़ानदानश दर अ’ज़ीमाबाद बस रौशनतर अस्त

शाह क़मरुद्दीन जद्दश ऊ बुवद शैख़-ए-अजल

बूद बर-सज्जादा-ए-अज्दाद-ए-ख़ुद रा जल्वः-गर

दाद रूए-सिलसिला रा ज़ूद अज़ हुस्न-ए-मसल

कर्द बैअ’त अज़ जनाब-ए-हज़रत-ए-सज्जाद शाह

उ’क़्दा-हा-ए-फ़क़्र रा ज़े-फ़ैज़-ए-ऊ ब-नमूद हल

दर जवानी कर्द रेहलत ईं-जहान-ए-बे-बक़ा

चूँ रसीद: पेश-ए-ख़ालिक़ याफ़्त दर जन्नत महल

जा-नशीन शुद रज़ीद्दीन बर खु़र्द-ए-ऊ

दर हक़-ए-तालिब वजूदश ईं बुवद ने’मल-बदल

बहर-ए-साल-ए-इर्तिहालश गुफ़्त हातिफ़ ‘हैफ़-ओ-आह’

शम्-ए’-बज़्म-ए-सूफ़िया रा कर्द गुल बाद-ए-अजल

1323 हिज्री

(कुल्लियात-ए-हम्द, मख़्ज़ूनिया कुतुब-ख़ाना ख़ुदा बख़्श ख़ाँ, शो’बा-ए-मख़्तूतात उर्दू)

आपका मज़ार आस्ताना-ए-हज़रत शाह क़मरुद्दीन मीतन घाट, पटना सीटी के सिरहाने है।

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