दानापुर- सूफ़ियों का मस्कन
इन्सान जिससे मोहब्बत करता है फ़ितरी तौर पर उसका ज़िक्र ज़्यादा करता है।वो चाहता है कि जिन महासिन और ख़ूबियों से मैं वाक़िफ़ हूँ दूसरे भी वाक़िफ़ हों ताकि वो खूबियाँ अपने अंदर पैदा करने की कोशिश करें।इसी जज़्बा के तहत ख़ानवादा साजदिया अबुल उलाइया, दानापुर और उनके अज्दाद-ए-किराम कई दहाइयों से अपने औलिया-ए-किराम की सीरत व सवानिह और उनके ज़र्रीं कार-नामों से अवामुन्नास को रूशनास कराने की मुसलसल सआदतें हासिल कर रहे हैं।बहुत सारी किताबों में उसका ज़िक्र है जो रोज़ ए रौशन की तरह अयाँ है। ये ख़ुसूसी मज़मून उसी का एक हिस्सा है।रब्ब ए करीम ख़ानवादा ए अबुल उलाइया अकबरिया को अपने हिफ़्ज़ ओ अमान में रखे।
जो दानापुर एक बस्ती है मशहूर
वो हो ईमान के अनवार से पुर-नूर
यहीं है ख़ानकाह ए अबुल उलाई
बड़ी दौलत है इस बस्ती ने पाई
-हज़रत शाह अकबर दानापुरी
दानापुर की सर-ज़मीन जो औलिया ए किराम का मस्कन और इल्म की रौशनी और मीनार है जिसको अहल ए ज़बान अल्लाह वाले के नाम से याद करते हैं।सर-ज़मीन ए ख़ुदा-दाद, शाह टोली दानापुर एक क़दीम दीनी ओ इल्मी मरकज़ है जहाँ हमारे बहुत से अस्लाफ़ और बुज़ुर्गान ए दीन महव ए इस्तिराहत हैं। हिन्दुस्तान के सूबा ए बिहार ज़िला पटना में दानापुर वाक़े’ है।और उन सादात ए किराम का मस्कन है जो निहायत ख़ामोशी के साथ अपने रुहानी फ़ैज़ान से इस आलम को बहरा-वर कर रहे हैं।
हज़रत इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह, मख़दूम शहाबुद्दीन ग़ौरी के ज़माने में मदीना-मुनव्वरा से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए और अपने तीन बेटे
(1) हज़रत मोहम्मद इस्राईल,
(2) हज़रत मोहम्मद इस्माईल और
(3) हज़रत मख़दूम अब्दुल अज़ीज़
को छोड़ कर मदीना शरीफ़ रवाना हो गए।जिसमें से मोहम्मद इस्माईल से हज़रत मख़दूम ए जहाँ शरफ़ा बिहारी हुए।और मख़दूम अब्दुल अज़ीज़ का ख़ानदान हिंदुस्तान में बहुत मशहूर हुआ। आप ही के ख़ानदान के बुज़ुर्ग हज़रत मख़दूम शाह तुराबुल-हक़ चिश्ती क़लंदरी मोड़वी सुम्मा दानापुरी तक़रीबन 1215 हिज्री में दानापुर शरीफ़ में आ बसे और रुश्द ओ हिदायत का फ़रीज़ा अंजाम दिया। हज़रत शाह तुराबुल-हक़ चिश्ती का ख़ानदान इस तरह चला।
(1) हज़रत मख़दूम सज्जाद पाक,
(2) हज़रत शाह अकबर दानापुरी,
(3) हज़रत शाह मोहसिन दानापुरी,
(4) हज़रत शाह ज़फ़र सज्जाद दानापुरी,
(5) हज़रत शाह महफ़ूज़ुल्लाह दानापुरी,
(6) हज़रत शाह अबू मोहम्मद दानापुरी।
मख़दूम शाह तुराबुल-हक़ की चार औलाद थी ।
मोहम्मद क़ासिम,
मोहम्मद वाजिद परेशाँ,
मोहम्मद सज्जाद साजिद औ
मोहम्मद यूसुफ़।
शाह मोहम्मद क़ासिम अबुलउलाई दानापुरी और मख़दूम मोहम्मद सज्जाद पाक की इल्मी लियाक़त ये थी कि शाह टोली दानापुर, बिहार को अवामुन्नास इल्म का मरकज़ और इल्म का गहवारा समझते थे।आपका सिलसिला ए नसब इस तरह है।मोहम्मद सज्जाद, इब्न-ए-तुराबुल-हक़,इब्न-ए-तय्यबुल्लाह नक़ाब-पोश, इब्न-ए-अमीनुल्लाह शहीद नवाबडी, इब्न-ए-मुनव्वरुल्लाह, इब्न-ए-मोहम्मद इनायतुल्लाह, इब्न-ए-दीवान ताजुद्दीन मोहम्मद, इब्न-ए-शाह तय्यिमुल्लाह, इब्न-ए-अख़ुन्द शैख़, इब्न-ए-अहमद चिश्ती,इब्न-ए-अब्दुल वहाब, इब्न-ए-अब्दुल-ग़नी, इब्न-ए-अब्दुल मलिक, इब्न-ए-ताजुद्दीन,इब्न-ए-अताउल्लाह, इब्न-ए-शैख़ सुलैमान लंगर ज़मीन, इब्न-ए-अब्दुल-अज़ीज़,इब्न ए इमाम मोहम्मद ताज फ़क़ीह।(तज़्किरतुल-किराम,पेज 418)
हज़रत शाह क़ासिम दानापुरी और मख़दूम सज्जाद पाक का डंका पूरे आलम में बजा और वो भी सिर्फ़ इल्मी लियाक़त और ख़ानवादा ए अबुल उलाइयत के बिना पर क्यूँकि वो दौर बहादुर शाह ज़फ़र(मुगल के आखरी बादशाहह) का था।शाह क़ासिम अबुल उलाइ के बारे में मुफ़्ती असदुल्लाह जौनपुरी और मुफ़्ती रियाज़ुद्दीन काकोरी फ़रमाते थे कि जिसको सहाबा ए किराम की ज़ियारत करनी हो तो वो मौलाना शाह मोहम्मद क़ासिम अबुल उलाई दानापुरी को देख ले। फ़सीहुल-बयान ऐसे थे के मुफ़्ती सदरुद्दीन अकबराबादी फ़रमाते थे कि हमने ऐसा मुसलसल सिलसिला ए कलाम नहीं सुना। आप ख़ुद सिलसिला ए कलाम का आग़ाज़ फ़रमाते।जब किसी ने किसी अम्र में इस्तिफ़सार(सवाल) किया तो जवाब देते थे। आपकी सिफ़ात ए दरवेशी मशहूर ए ज़माना थी।दिल्ली में एक मर्तबा सुल्तानुल-मशाइख़ हज़रत महबूब ए इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया के उर्स में हज़रत शाह क़ासिम पर कैफ़ियत तारी थी। उमरा ओ मशाइख़ रौनक़-अफ़रोज़ थे। आख़िरी मुग़ल ताजदार बहादुर शाह ज़फ़र भी शरीक ए मज्लिस थे। बहादुर शाह ज़फ़र को आपकी मुलाक़ात का इश्तियाक़ हुआ और आपकी ख़िदमत में मुफ़्ती सदरुद्दीन अकबराबादी के तवस्सुत से शाही महल में तशरीफ़ फ़र्मा होने का दावतनामा भेजा मगर आपने पसंदीदा तरीक़े से उस पैग़ाम से किनारा कशी इख़्तियार फ़रमाया। (तज़्किरतुल-किराम,पेज 708)
1881 में हज़रत शाह अकबर दानापुरी ख़ानक़ाह सज्जादिया अबुल उलाइया, दानापुर के साजदा नशीं हुए, शाह अकबर दानापुरी का दौर आया तो सिर्फ़ दानापुर ही नहीं बल्कि आगरा, इलाहाबाद, ग्वालियार, अजमेर शरीफ़, किशनगंज, गया,ढोलपुर, हैदराबाद, दिल्ली और मदीना मुनव्वरा, मक्का मुअज़्ज़मा, पाकिस्तान और बंगलादेश के कई इलाक़ों में आपकी रूहानी और इल्मी शाहकार की बिना पर आपका लक़ब हाजी ए हरमैन ए शरीफ़ैन और ताजुश्शोरा (शोरा के ताज) हो गया। आज भी लोग आपको इसी लक़ब से जानते और पहचानते हैं। शाह मोहम्मद अकबर अबुल उलाई दानापुरी एक आरिफ़-बिल्लाह ही नहीं बल्कि सूफ़ी शाइर और इल्मी निकात के माहिर थे। आपकी बे-शुमार तसानीफ़ मौजूद हैं जो आपकी इल्मी लियाक़त को ज़ाहिर करती हैं ।
अकबर इलाहाबादी ने शाह अकबर दानापुरी के नाम एक ख़त अलीगढ़ से रवाना किया था।वो ख़त मुलाहज़ा फ़रमाएं।
सर-ताज ए बिरादरान ए तरीक़त मस्नद आरा ए बज़्म ए मारिफ़त ज़ादल्लाहु इर्फ़ानहु
तस्लीम!
आपकी तहरीर ने इज़्ज़त बख़्शी।आपका ख़याल निहायत उम्दा है।आप ही के घर का फ़ैज़ है कि इस ज़माना में और इस हालत में भी मेरे अक़ाइद महफ़ूज़ हैं।वही हुआ है कि इस तूफ़ान ए बे-तमीज़ी में भी दर्द ए दिल से कभी-कभी पर्दा ए ग़फ़तत उलट देती है और ये शेर ज़बान पर आ जाता है:
हल्क़ा-ए-पीर-ए-मुग़ानम रा अज़ल दर गोश अस्त।
बर हमा नीम कि बूदेम हम ख़्वाहद बूद।।
मौरूसी मोतक़िद मोहम्मद अकबर हुसैन
अकबर इलाहाबादी”
शाइरी में वहीद इलाहाबादी के शागिर्द और अकबर इलाहाबादी के उस्ताद भाई और पीर भाई थे। शाह अकबर दानापुरी ने अपने मुस्तनद दीवान जज़्बात-ए-अकबर और तजल्लियात-ए-इश्क़ को ददुनिया के सामने रखा।तजल्लियात इश्क़ में इस तरह तहरीर करते हैं।
शागिर्द ‘वहीद’ के हैं दोनों ‘अकबर’ ,
हम-मश्क़ भी हम दोनों रहे हैं अक्सर,
लेकिन क़िस्मत का साद उन पर ही हुआ,
पत्थर-पत्थर है और जौहर जौहर,
दानापुर की याद-गार ख़ानक़ाह जो आज तक मौजूद है जिसे अहल ए ज़बान ख़ानक़ाह सज्जादिया अबुल उलाइया के नाम से जानते हैं जिसके सज्जादा नशीन शाह अकबर दानापुरी के पर पोते हज़रत हाजी सय्यिद शाह सैफ़ुल्लाह अबुल उलाई हैं।
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