Ishqbaazi (इश्क़बाज़ी)
रोज़ ए अज़ल से यह कहानी चलती आ रही है । खुदा ने जब ये क़ाएनात बनाई तो साथ ही साथ आत्मा की पतंग भी इश्क़ की डोर से बांध कर उड़ा दी । पतंग जब आसमान में पहुंची तो उसे ऐसा लगने लगा कि ये डोर उसे बांध रही है । उसकी अंतरात्मा ने गुहार लगाई कि अगर ये डोर नहीं होती तो पतंग और ऊंचे आसमान मे जाती । पतंग ने वक़्त की तेज़ आँधी से दोस्ती बनाई और एक उस आँधी ने एक झटके मे ही पतंग को इश्क़ की डोर से अलग कर दिया । मगर ये क्या ! पतंग ऊंचे जाने की बजाय सीधी ज़मीन पर आ गिरी। सूफ़ीनामा पर इश्कबाज़ी का ये कोना उसी पतंग की आत्मकथा है जो ऊंचे आसमान से ज़मीन पर सूफ़ियों- संतों के आँगन मे गिरती रही । इन सूफ़ी संतों ने इसे पुनः इश्क़ की डोर से बांधा, और इश्क़ ए हक़ीक़ी का माँझा चढ़ा कर फिर से आसमान मे उड़ा दिया । यह कहानी यूं ही आज तक चलती आ रही है । आत्मा की यह पतंग जिन खुदा के बंदों के आँगन में गिरी हम एक-एक कर उनकी कहानी इस पतंग की ज़ुबानी सुनेंगे ! आइये सूफ़ीनामा पर इश्कबाज़ी की इब्तिदा करते हैं indigenerics.com!
( निज़ामी बंसरी मे एक वाक़या आता है – हज़रत बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी ने हज़रत बाबा फ़रीद को एक ख़त भेजा जिसमे उन्होने लिखा कि हमारे और तुम्हारे बीच इश्क़बाज़ी (love feud) है। बाबा फ़रीद ने इसपर जवाब भेजा – हमारे बीच सिर्फ इश्क़ है बाज़ी नहीं । )
इस इश्क़बाज़ी मे भी सिर्फ़ सुच्चा इश्क़ है ।
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