Qawwalon ke Qisse-10 Sheikh Manjhu Qawwal ka Qissa

शैख़ मंझू जौनपुर में ही पैदा हुए और वहीं उनकी मृत्यु हुई।वह बचपन से ही संगीत के बड़े प्रेमी थे। मख़्दूम शाह अढ़हन के यहाँ मजलिसों में वह रोज़ उपस्थित रहते थे। यहाँ बड़े बड़े क़व्वाल आया करते थे ।मख़्दूम साहब के निर्देशानुसार मंझू ने संगीत की शिक्षा प्राप्त की।कंठ में मानो ईश्वर का का वरदान था। कुछ ही दिनों में उन्हें संगीत के बड़े विद्वानों में गिना जाने लगा ।ये बादशाह अकबर के शाही गवैये तानसेन के समकालीन थे। इन्होने मख़्दूम शाह अढ़हन जौनपुरी का दरबार छोड़कर कहीं जाना पसंद नहीं किया ।

मौलाना मुहम्मद हुसैन आज़ाद ‘दरबार-ए-अकबरी’ में लिखते हैं कि ”मुल्ला फ़रमाते हैं कि शैख़ मंझू क़व्वाल सूफ़ियों के समान जीवन व्यतीत करते थे।उसी समय अकबर ने उन्हें हौज के किनारे बुलवाया और उनका गाना सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ। तानसेन और अपने दूसरे दरबारी गवैयों से अकबर ने कहा -तुम मियां मंझू की बराबरी कभी नहीं कर सकते। फिर उसने मंझू से कहा -जा सब पूँजी तू ही ले जा। उस से क्या उठ पाता सो मंझू ने कहा हुज़ूर आज्ञा दें की सेवक जितना ले जा सके ले जाय।अकबर ने स्वीकार किया और मंझू लगभग एक हज़ार रूपये बाँध कर ले गया।”

सय्यद एकबाल अहमद जौनपुरी की किताब – ‘शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास’ से साभार

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