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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

है शहर ए बनारस की फ़ज़ा कितनी मुकर्रम

महसूस यूँ हुआ कि हम जन्नत में आ गए
कैसी है देखो आज फ़ज़ा कुछ न पूछिए

हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री

जवामिउ’ल-कलिम में मज़कूर है कि एक-बार मौलाना ज़ैनुद्दन दौलताबादी, ख़लीफ़ा मौलाना बुर्हानुद्दीन ग़रीब ने बंदगी-ए-ख़्वाजा से अ’र्ज़ किया कि इस ग़रीब के मरज़-ए-दिल की सेहत के लिए दुआ’ फ़रमाएं तो बंदगी-ए-ख़्वाजा ने अपने दाँतों से उंगली पकड़ ली और फ़रमाया कि मौलाना दिल को मरीज़ न कहिए।

हज़रत मौलाना शाह हिलाल अहमद क़ादरी मुजीबी

शाह हिलाल अहमद साहिब की ज़ात ने ख़ानक़ाही अंदाज़ ओ अतवार को शोहरत दी। ख़ानक़ाही माहौल के साथ मदरसा ओ इफ़्ता के वक़ार में कभी कमी महसूस नहीं होने दिया। हर छोटे बड़े सब से मिला करते थे और अपने उम्दा अख़्लाक़ की वज्ह से बहुत जल्द उनके क़रीब हो जाया करते। अपने इल्म ओ अमल, तक़्वा ओ परहेज़ गारी,आजिज़ी ओ इन्किसारी में अपने अस्लाफ़ के पैरो कार थे। उनकी रिवायतों के अमीन थे। उनकी निगाह अपने अस्लाफ़ को देखा करती थी। उन्होंने कई बुज़ुर्गों का दौर देखा था और उनकी सोहबत भी उठाई थी।

हकीम सय्यद शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी

शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी साहिब ने 1946 ईस्वी का फ़साद भी देखा था। जब मुल्क में क़त्ल ओ ग़ारत का सिलसिला ज़ोरों पर था लोग देही इलाक़ों से शहरों की जानिब कूच कर रहे थे तो उनमें शाह साहिब भी अपने वालिद के साथ फ़तूहा से शहर ए अज़ीमाबाद आने वालों में शरीक थे। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना अब्दुल-क़ादिर अज़ाद सुबहानी, सर सय्यद अली इमाम बैरिस्टर वग़ैरा की सोहबत ओ संगत भी शाह साहिब को बहुत कुछ ज़िंदगी के अमली मैदान में सिखा गई।

चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा-प्रोफ़ेसर ख़लीक़ अहमद निज़ामी

अ’स्र-ए-हाज़िर का एक मशहूर दीदा-वर मुवर्रिख़ और माहिर-ए-इ’मरानियात ऑरनल्ड टाइन बी, अपनी किताब An Historians  Approach  To Religion (मज़हब मुवर्रिख़ की नज़र में) लिखता है कि तारीख़-ए-उमम ने मज़ाहिब-ए-आ’लम की इफ़ादियत और उनके असर-ओ-नुफ़ूज़ के जाएज़े के लिए एक मुवस्सिर अ’मली पैमाना बना लिया है, और वो है मुसीबत और मा’सियत में इन्सान की दस्त-गीरी की सलाहियत।… continue reading