हज़रत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागौरी
मौलाना क़ुतुबुद्दीन काशानी देहली आए तो फ़रमाया कि हमीदुद्दीन के इ’श्क़ की वजह से देहली आया हूँ। एक रोज़ उन्होंने क़ाज़ी हमीदुद्दीन की तमाम तसानीफ़ मँगवा कर पढ़ीं और अपने हमराही उ’लमा से कहा कि यारो !जो कुछ हम ने और तुम ने पढ़ा है, वो सब इन रिसालों में मौजूद है, और जो कुछ नहीं पड़ा है वो इ’ल्म भी इन किताबों में मौज़ूद है।