ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी: सीरत, करामात,अक़्वाल-ओ-ता’लीमात

 
(विलादत 526 या 510 हिज्री1129 ई’स्वी, विसाल 6 शव्वालुल-मुकर्रम 617 हिज्री 1220, 3 नवंबर)
‘आँ इमाम-ए-अस्हाब-ए-विलाएत,आँ सुल्तान-ए-क़ाफ़िला-ए- हिदायत,आँ दाइम ब-मक़ाम-ए-मुशाहिदः-ए-बातिनी’(1) (बह्र-ए-ज़ख़ाइर, सफ़्हा 433)

अल्लाह यूँ  तो हर दौर में वली पैदा फ़रमाता है जो दुनिया-ए-मा’रिफ़त का निज़ाम चलाते हैं लेकिन उसमें उ’रूज-ओ-ज़वाल कमी-ओ-बेशी आती रहती है। जो मरातिब तक़सीम होते हैं उनमें ज़माने के हलात-ओ-ज़रूरियात का दख़्ल भी होता है। बा’ज़ सिल्सिला-ए-रुहानी में ऐसे वली-ए-कामिल पैदा होते हैं जो ताजदार-ए-सिल्सिला कहलाए जाते हैं जिनसे उस अ’हद में और बा’द में भी सिल्सिलों की पहचान होती है। सिल्सिला-ए-चिश्तिया को नया उ’रूज बख़्शने वाले और आ’लम-ए-मा’रिफ़त के आफ़्ताब शैख़ुल-इस्लाम हज़रत उ’स्मान ऐसे ही एक अ’ज़ीमुल-मर्तबत बुज़ुर्ग हैं जिन्हों ने दीन-ए-मुस्तफ़वी को एक आ’लम के सामने मुतआ’र्रिफ़ कराया। साथ ही ख़्वाजा-ए- ख़्वाज-गान ख़्वाजा सय्यिद मुई’नुद्दीन हसन संजरी अजमेरी  जैसा गौहर-ए-बे-नज़ीर दिया जिनकी निस्बत-ओ-ज़ात-ए-सतूदा सिफ़ात से आज चिश्तियत जानी-ओ-पहचानी जाती है। वैसे तो लाखों अफ़राद को शरफ़-ए-बैअ’त हासिल था और एक आ’लम आपकी गु़लामी पे फ़ख़्र करता था लेकिन उ’स्मान हारूनी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु को तवज्जोह का मर्कज़ ख़्वाजा हिन्दुल-वरा की ज़ात नज़र आती है।आपने अपना सारा रुहानी विर्सा-ओ-तर्का हुज़ूर ग़रीब-नवाज़ को अ’ता फ़रमा दिया था और बारगाह-ए-इलाही में आप कामयाबी की दुआ’ करते थे।

हज़रत का इस्म-ए-शरीफ़ उ’स्मान,कुनिय्यत अबी नूर,लक़ब ख़्वाजा-ए-आ’ज़म सय्यिदुल-आ’बिदीन क़ुद्वतुल-औलिया है। क़ुतुबुल-अक़्ताब, नासिरुल-इस्लाम, आ’रिफ़-ए-अस्रार-ए-रहमानी, वासिल-ए-ज़ात-ए-बारी, महबूब-ए-साहिब-ए-ला-मकानी, शैख़ुल-इस्लाम हज़रत ख़्वाजा मुहम्मद उ’स्मान हारूनी का शुमार अकाबिरीन-ए-उ’म्मत और किबार-ए-औलिया-ए-किराम-ओ-मशाइख़-ए-उज़्ज़ाम में होता है।उ’लूम-ए-ज़ाहिरिया-ओ-उ’लूम-ए-बातिनिया, शरीअ’त-ओ-तरीक़त, तसव्वुफ़-ओ-मा’रिफ़त में मज्मउ’ल-बह्रैन थे।

विलादतः

आपकी पैदाइश ख़ुरासान में नेशापुर के पास मक़ाम-ए-हरून क़स्बा में हुई।आज उस जगह का नाम हारूनाबाद है। ये मश्हद-ए-मुक़द्दस से एक मील के फ़ासिला पर वाक़िअ’ है। इसी निस्बत से आपको को हारूनी या हरूनी कहा जाता है। जैसे कि ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद चराग़ दिल्ली रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने भी ख़ैरुल-मजालिस(2) में हरूनी फ़रमाया। हालाँकि हुज़ूर ग़रीब-नवाज़ अनीसुल-अर्वाह (3) मैं हारूनी ही तहरीर फ़रमाया है। सियरुल-आ’रिफ़ीन के मुसन्निफ़ हामिद बिन फ़ज़लुल्लाह जमाली ने हरूनी लिखा है (4) (वल्लाहु आ’लम)। अस्ल-ओ-आ’म इस्ति’माल के ए’तबार से दोनों मान लेना अज़ रू-ए-अदब बजा है।
हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी मक्की रज़ा-अल्लाहु अ’न्हु सिल्सिला-ए-चिश्तिया के रुहानी जांनशीन हैं। हाजी शरीफ़ ज़ंदनी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु से बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त अ’ता हुई। खिर्क़ा-ए-इरादत हज़रत शैख़ से पहना।
सियरुलु-औलिया जो मशाइख़ का हिन्दुस्तान में सबसे क़दीम तज़्किरा है उसके मुवल्लिफ़ सय्यिद मोहम्मद मुबारक अ’ल्वी किर्मानी अल-मा’रूफ़ ब-अमीर-ए-ख़ुर्द किर्मानी लिखते हैं ‘दर इ’ल्म-ए-शरीअ’त-ओ-तरीक़त-ओ-हक़ीक़त आ’लम-ए-वक़्त बूद। मुक़तदा-ए-औताद-ओ-अब्दाल-ओ-ख़िर्क़ा-ए-इरादत अज़ ख़िदमत-ए-ख़्वाजः हाजी शरीफ़ ज़ंदनी पोशीदः’। हज़रत उ’स्मान हारूनी रहमतुल्लाहि अ’लैह इ’ल्म-ए-शरीअ’त-ओ-तरीक़त में अपने वक़्त के बहुत बड़े आ’लिम और मुक़्तदा-ए-औताद-ओ-अब्दाल थे। आपने ख़िर्क़ा-ए-इरादत हज़रत ख़्वाजा शरीफ़ ज़ंदनी से पहना था। (5)125

सिल्सिला-ए-नसब :

आपके बारे में तज़्किरा-निगारों में ख़ामोशी नज़र आती है लेकिन कुछ दीगर रिवायात में आया है कि हज़रत शैख़ उ’स्मान हारूनी चिश्ती का सिल्सिला-ए-नसब हज़रत उ’स्मान-ग़नी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु तक पहुंचता है। बा’ज़ के नज़दीक उ’म्र बिन ख़त्ताब रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु तक है। सय्यिद ए’जाज़ अ’ली चिश्ती अजमेरी फ़ाज़िल-ए-फ़िरंगी महल ने अपनी किताब ‘सवानिह-ए-शैख़ुल-इस्लाम उ’स्मान हारूनी रहमतुलल्लाह में ‘सय्यिद तहरीर किया है । (6)

सिल्सिला-ए-तरीक़त:

हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी अज़ शैख़ हाजी शरीफ़ ज़ंदनी अज़ शैख़ हज़रत क़ुतुबुद्दीन मौदूद चिश्ती अज़ ख़्वाजा अबू यूसुफ़ चिश्ती अज़ ख़्वाजा मोहम्मद चिश्ती अज़ ख़्वाजा अहमद अब्दाल चिश्ती अज़ ख़्वाजा अबू इस्हाक़ शामी चिश्ती अज़ हज़रत ख़्वाजा मुमशाद अ’ल्वी दीनवी अज़ हज़रत शैख़ अमीनुद्दीन अबी हुबैरा बसरी अज़ हज़रत शैख़ सय्यिदुद्दीन हुज़ैफ़ा अल-मरअ’शी अज़ हज़रत शैख़ सुल्तान इब्राहीम बिन अद्हम बलख़ी ख़्वाजा अबू फुज़ैल बिन अ’याज़ अज़ हज़रत ख़्वाजा अब्दुल-वाहिद बिन ज़ैद अज़ हज़रत शैख़ इमामुत्तरीक़त ख़्वाजा हसन बसरी अंसारी अज़ इमामुल-औलिया सय्यिदना हज़रत अ’ली इब्न-ए-अबी तालिब कर्रमल्लाहु वजहाहु अज़ सय्यिदुल-अंबिया मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अ’लैहि-वसल्लम।

इ’बादत-ओ-रियाज़त

रातों को जागने वाले और बहुत ज़्यादा इ’बादत करने वाले थे। उनकी इ’बादत का अल्लाह की बारगाह से जवाब आता था। आप बड़े आ’बिद-ओ-ज़ाहिद थे। सत्तर (70) बरस तक रियाज़त मुजाहिदात में रहे। इस अ’र्सा में न कभी पेट भर कर खाना खाया न कभी सैर हो कर पानी पिया और न कभी रात को नींद भर कर सोए ।चौथे, पाँचवें फ़ाक़ा पर इफ़्तार करते थे । तीन चार लुक़्मों से ज़्यादा तनावुल न फ़रमाते थे। रात-ओ-दिन दो क़ुरआन शरीफ़ ख़त्म करते। (सियरुल-अक़ताब) (7)

बारगाह-ए-इलाही में मक़्बूलियत

जब ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी नमाज़ अदा कर लेते तो ग़ैब से आवाज़ आती कि हमने तुम्हारी नमाज़ पसंद की।माँगो क्या मांगते हो? ख़्वाजा साहिब अ’र्ज़ करते ख़ुदाया मैं तुझे चाहता हूँ। आवाज़ आती कि उ’स्मान मैंने जमाल-ए-ला-ज़वाल तुम्हारे नसीब किया| कुछ और माँगो क्या मांगते हो? अ’र्ज़ करते इलाही मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अ’लैहि-वसल्लम की उम्मत से गुनाहगारों को बख़्श दे। आवाज़ आती कि उम्मत-ए-मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि-वसल्लम के तीस हज़ार गुनाहगार तुम्हारी वजह से बख़्शे। आपको पाँचों वक़्त ये बशारत मिलती’ (8)

बे-कस नवाज़ी

साहिब-ए-सियरुल-औलिया शैख़ मोहम्मद मुबारक अ’लवी किर्मानी अमीर-ए-ख़ुर्द किर्मानी रहमतुलल्लाहि अ’लैह लिखते हैं
‘हज़रत ख़्वाजा ग़रीब रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया कि एक दफ़ा’ मैं अपने पीर-ओ-मुर्शिद ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी के साथ सफ़र करते हुए दरिया-ए-दजला के किनारे पहुंचा। वहाँ दरिया पार करने के लिए एक भी कश्ती न थी| शैख़ ने फ़रमाया आँखें बंद करो| मैंने आँखें बंद कीं| फिर थोड़ी देर के बा’द फ़रमाया आँखें खोल लो। जब मैंने खोलीं तो हम दोनों दरिया के पार दूसरे साहिल पर खड़े थे। (9)i۔

सियरुल-औलिया में ही हज़रत ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु से ही रिवायत है फ़रमाते हैं एक दिन एक बूढ़ा शख़्स हैरानी-ओ-परेशानी के आ’लम में ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। अ’र्ज़ की मेरा लड़का चालीस साल से गुम है। उसकी ज़िंदगी और मौत की भी मुझे ख़बर नहीं। आपकी ख़िदमत में इसलिए हाज़िर हुआ हूँ ताकि दुआ’ फ़रमाएं कि मेरा बेटा मिल जाए।आपने सर झुका कर मुराक़बा किया। थोड़ी देर के बा’द सर उठाया और हाज़िरीन से इर्शाद फ़रमाया कि दुआ’ करो कि इसका बेटा मिल जाए। जब दुआ’ कर चुके तो आपने उस बूढ़े शख़्स से फ़रमाया तुम घर जाओ तुम्हारा बेटा घर पहुंच गया है। जब वो बूढ़ा शख़्स घर पहुंचा तो किसी ने मुबारक-बाद दी कि तुम्हारा बेटा घर आ गया है। जब बाप बेटे की मुलाक़ात हुई तो दोनों ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी की ख़िदमत में पहुंचे। ख़्वाजा साहिब ने लड़के से पूछा तुम इतने सालों से कहाँ थे? उसने कहा मुझे जिन्नातों ने पकड़ लिया था और वहाँ ज़ंजीरों में जकड़ रखा था। मैंने वहाँ आपकी शक्ल के एक बुज़ुर्ग को देखा कि वो आए और ज़ंजीरों पर निगाह डाली तो बेड़ियाँ टूट कर गिर पड़ीं और उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर फ़रमाया कि आँखें बंद करो। मैंने आँखें बंद कर लीं और जब मैंने आँखें खोलीं तो देखा कि मैं अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा हूँ। (9)ii

क़ब्र में मुरीद की मदद

ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु फ़रमाते हैं कि मेरे पड़ोस में आपके मुरीदों में से एक शख़्स रहता था। जब उसने इंतिक़ाल किया तो मैं भी उस के जनाज़ा के साथ गया और लोग तो उस को दफ़्न कर के लौट आए। मगर मैं एक साअ’त उसकी क़ब्र के सिरहाने बैठा रहा। देखा कि अ’ज़ाब के फ़रिश्ते निहायत ख़ौफ़नाक और भयानक सूरत में उसकी क़ब्र के अंदर आए । इतने में हुज़ूर ख़्वाजा-ए-आ’ज़म भी वहाँ जल्वा-फ़रमा हुए और फ़रिश्तों से फ़रमाया, ‘ ये मेरा मुरीद है इस पर अ’ज़ाब न करो’। फ़रिश्तों ने हुक्म-ए-रब्बानी पाकर अ’र्ज़ किया कि ये आपका सच्चा मुरीद न था बल्कि आपके तरीक़ा के ख़िलाफ़ चलता था। आपने फ़रमाया हाँ इस में शक नहीं मगर ये अपने आपको मेरे सिल्सिला से वाबस्ता जानता था”। हुक्म हुआ हमने उस को बख़्श दिया। (10)

मस्अला-ए-समाअ’ पर मुनाज़रा और हज़रत की इस्तिक़ामतः

आप समाअ’ बहुत सुनते थे और हालत में इस क़दर रोते कि लोगों को आपके हाल पर हैरत होती थी। रिवायत है कि ख़लीफ़ा-ए-वक़्त ने समाअ’ पर ए’तराज़ किया और हुक्म जारी किया कि जो शख़्स समाअ’ सुने उसे दार पर खींच दिया जाए और क़व्वालों को क़त्ल कर दिया जाए। ये कैफ़िय्यत सुनकर आपने फ़रमाया कि ‘समाअ’ अल्लाह के राज़ों में से एक राज़ है। दौरान-ए-समाअ’ बंदे और अल्लाह के दर्मियान कोई चीज़ हाइल-ओ-माने’ नहीं होती। किसकी ताक़त है कि समाअ’ की मुमानअ’त करे। इस को कोई मौक़ूफ़ नहीं कर सकता। मैं अल्लाह से दुआ’ करता हूँ और उम्मीद रखता हूँ कि हमारे मुरीद और हमारी औलाद क़ियामत तक समाअ’ सुने और अह्ल-ए-समाअ’ पर कोई शख़्स फ़त्ह  न पाए। हमारे अक्सर पीरों ने समाअ’ समाअ’त फ़रमाया है। पस अगर मैं समाअ’ से तौबा करूँ तो ख़ता-वार और गुनहगार हूँ । आपका फ़रमान ख़लीफ़ा को पहुंचाया गया। ख़लीफ़ा ने कहलाया हज़रत तशरीफ़ लाएं और उ’लमा से मुबाहसा कर लें।अगर उ’लमा समाअ’ को जाइज़ मान लें तो मैं मुमानअ’त न करूँगा। आपने उसी वक़्त इस्तिख़ारा फ़रमाया और ख़लीफ़ा की मज्सिल में रौनक़-अफ़रोज़ हो गए। ख़लीफ़ा ने तमाम मो’तबर उ’लमा को जम्अ’ किया मगर ख़ुद मह्फ़िल में बैठने की ताब न ला सका। पर्दा के पीछे बैठे उ’लमा हज़रत का जमाल-ए-जहाँ-आरा देखकर काँप उठे और जिस क़दर इ’ल्म रखते थे भूल गए। हत्ता कि हुरूफ़-ए-तहज्जी भी याद न रहे । ख़लीफ़ा ने बहुत तर्ग़ीब दी मगर वो कुछ न बोल सके। आख़िर कहने लगे ऐ ख़लीफ़ा हम जिस क़दर इ’ल्म रखते थे वो हज़रत उ’स्मान का रू-ए-अनवर देखकर भूल गए इसलिए हम मुबाहसा करने की क़ुव्वत नहीं रखते। ना-चारा तमाम उ’लमा-ओ-फुक़हा ने रो कर आ’जिज़ी का इज़्हार किया और आपके क़दमों पर गिर कर फ़रियाद की कि ख़लीफ़ा सुह्रवर्दी है समाअ’ की मुमानअ’त करता है। मगर हमारी ये कहाँ मजाल है जो ये कहें कि समाअ’ हराम है ।आप अपने और अह्ल-ए-समाअ’ के सदक़ा में हम परेशान-हालों पर करम फ़रमइए।आपने अज़ राह़-ए-करम तवज्जोह के साथ नज़र डाली जो इ’ल्म वो भूल गए थे याद आ गया। उन्होंने हज़रत की ख़िदमत इख़्तियार की और साहिब-ए-कमाल हो गए। ख़लीफ़ा ने जब आपकी ये अ’ज़्मत देखी तो  मुख़ालफ़त मंसूख़ की। बा’दहु आप दौलत-सरा में तशरीफ़ लाए और सात दिन तक समाअ’ फ़रमाते रहे। फिर आपके समाअ’ सुनने पर किसी ने ए’तराज़ नहीं किया।
(सिर्रुल-अक़्ताब सफ़हा 96,98 (11)

वाक़िआ’ बैअ’त-ओ-ख़िलाफ़त-ए-हुज़ूर ग़रीब-नवाज़ रज़ी-अल्लाह अ’न्हु

मुई’नुल-अर्वाह में है ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ मुर्शिद की तलाश में सियाहत करते हुए अ’रब से हारून नेशापुर (मुत्तसिल मश्हद-ए-मुक़द्दस आज कल ये जगह  ग्रेटर ख़ुरासान कहलाती है) में तशरीफ़ लाए और 552 हिज्री में आपके दस्त-ए-हक़-परसत पर बैअ’त की । उस वक़्त आपकी शोहरत दूर-दराज़ ममालिक में फैली हुई थी । ढाई साल तक आप ने ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ को रियाज़त-ओ-मुजाहिदा में रखा और अपने फ़ैज़-ए-सोहबत से सरफ़राज़ फ़रमाया। फिर इजाज़त लेकर रुख़्सत हुए। दूसरी दफ़ा’ ग़रीब-नवाज़ रे (i) से बग़दाद शरीफ़ तशरीफ़ ला कर हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु से बैअ’त-ए-तक़र्रुब (बैअ’त-ए-दोउम) का शरफ़ हासिल किया।उस बैअ’त के वाक़िआ’त ख़ुद ग़रीब-नवाज़ इस तरह रक़म फ़रमाते हैं। मोमिनीन का दुआ’-गो मुई’नुद्दीन हसन संजरी, ब-मक़ाम –ए-बग़दाद ख़्वाजा जुनैद रज़ी-अल्लाह अ’न्हु की मस्जिद में हज़रत उ’समान हारूनी की दौलत-ए-पा-बोसी से मुशर्रफ़ हुआ। उस वक़्त मशाइख़-ए-किबार हाज़िर-ए-ख़िदमत थे। जब इस आ’जिज़ ने सर-ए-नियाज़ ज़मीन पर रखा, पीर-ओ-मुर्शिद ने इर्शाद फ़रमाया, ‘दो रक्अ’त नमाज़ अदा करो। दुआ’-गो ने अदा की फिर फ़रमाया क़िबला-रू बैठो।ये दुआ-गो बैठ गया । फिर फ़रमाया सूरा-ए-बक़रा पढ़ो। इस दुआ’-गो ने पढ़ी। फिर फ़रमान हुआ इक्कीस बार दुरूद शरीफ़ पढ़।दुआ’-गो ने पढ़ा। बा’द-अज़ां आप खड़े हो गए और दुआ’-गो का हाथ पकड़ कर आसमान की तरफ़ मुँह किया और फ़रमाया आ ताकि  तुझे ख़ुदा तक पहुंचा दूं। “बा’द-अज़ां मिक़्राज़ लेकर दुआ’-गो के सर पर चलाई और कुलाह-ए-चहार तुर्की इस दरवेश के सर पर रखी।गलीम-ए-ख़ास अ’ता फ़रमाई फिर इर्शाद फ़रमाया बैठो। दुआ’-गो बैठ गया। फ़रमाया ‘‘हमारे ख़ानवादे में एक शबाना-रोज़ मुजाहिदा का मा’मूल है तू आज रात-दिन मश्ग़ूल रह’’। ये दरवेश ब-हुक्म-ए-मोहतरम मश्ग़ूल रहा।दूसरे दिन जब हाज़िर-ए-ख़िदमत हुआ तो इर्शाद हुआ बैठ जा और चार हज़ार बार सूरा-ए-इख़्लास पढ़ो। दुआ’-गो ने पढ़ी फिर फ़रमाया आसमान की तरफ़ देख़ ।दुआ’-गो ने देखा। दरयाफ़्त फ़रमाया कहाँ तक देखा? अ’र्ज़ किया अ’र्श-ए-आ’ज़म तक। फिर फ़रमाया ज़मीन की तरफ़ देख। दुआ’-गो ने देखा। पूछा कहाँ तक देखा। अ’र्ज़ किया तह्तुस्सुरा तक। फ़रमाया फिर हज़ार बार सूरा-ए-इख़्लास पढ़ो। दुआ’-गो ने पढ़ी ।फ़रमाया फिर आसमान की तरफ़ देख। दुआ’-गो ने देखा। पूछा अब कहाँ तक देखा है। अ’र्ज़ किया ‘हिजाब-ए-अ’ज़्मत’ तक। फ़रमाया आँखें बंद कर। दुआ’-गो ने बंद कर लीं। फ़रमाया खोल। फिर दुआ’-गो को अपनी दो उंगलियाँ दिखा कर पूछा क्या देखता है? अ’र्ज़ किया अठारह हज़ार आ’लम देखता हूँ। बा’द-अज़ां समाने पड़ी हुई एक ईंट के उठाने का हुक्म दिया। दुआ’-गो ने उठाई तो मुट्ठी भर दीनार बरामद हुए। फ़रमाया उनको फ़ुक़रा में तक़्सीम करो। दुआ’-गो ने हुक्म की त’मील की। बा’द-अज़ां हाज़िर-ए-ख़िदमत हुआ। इर्शाद हुआ चंद रोज़ हमारी सोह्बत में क़ियाम करो फिर चले जाना।
ग़रीब-नवाज़ फ़रमाते हैं बा’द-अज़ां मुर्शिद ने इस दुआ’-गो को साथ लेकर बग़्दाद से ख़ाना-ए-का’बा का सफ़र किया। मक्का मुअ’ज़्ज़मा की तरफ़ रवाना हुए। मक्का मुअ’ज़्ज़मा पहुंच कर ज़ियारत-ओ-तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-का’बा से मुशर्रफ़ हुए। पीर-ओ-मुर्शिद ने यहाँ मेरा हाथ पकड़ा और हक़-तआ’ला की सुपुर्द किया। ज़ेर-नावरदान-ए-का’बा मेरे हक़ में दुआ’ की। निदा आई हमने मुई’नुद्दीन को क़ुबूल किया। बा’द-अज़ां मदीना मुनव्वरा आए। हरम-ए-नबवी में हाज़िरी दी। मुर्शिद ने फ़रमाया सलाम करो। मैंने सलाम अ’र्ज़ किया। आवाज़ आई  व-अ’लैकुमुस्सलाम या क़ुतुबु-ए-मशाइख़ ये सुनकर पीर-ओ-मुर्शिद ने फ़रमाया’’। अब तू दर्जा-ए-कमाल को पहुंच गया।
(अनीसुल-अर्वाह तर्जुमा, मिरअतुल-अस्रार,उर्दू तर्जुमा सफ़हा 554،555i)(12)(ii)

तबर्रुकात-ए-नबवी-ओ-अ’ता-ए-जानिशीनी

हुज़ूर ग़रीब-नवाज़ ब-उ’म्र 52 साल बग़्दाद में पीर-ओ-मुर्शिद से रुख़्सत  हुए। इस मौक़ा’ पर हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी ने हुज़ूर ग़रीब-नवाज़ को ख़िलाफ़त-ए-जानशीनी से सरफ़राज़ फ़रमाया और तबर्रुकात-ए-मुस्तफ़वी जो ख़्वाजगान-ए-चिश्त में सिल्सिला ब-सिल्सला चले आ रहे थे आपको अ’ता फ़रमा कर अमीन-ए-तबर्रुकात, सज्जादा नशीन और अपना जांनशीन बनाया। इन वाक़िआ’त की तश्रीह ग़रीब-नवाज़ इस तरह बयान फ़रमाते हैं:
‘पीर-ओ-मुर्शद हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी ने फ़रमाया ऐ मुई’नुद्दीन मैंने ये सब काम तेरी तकमील के लिए किया है। तुझको इस पर अ’मल करना लाज़िम है। फ़र्ज़न्द-ए-ख़लफ़-ए- रुहानी फ़र्ज़न्द वही है जो अपने होश गोश में पीर के इर्शाद को जगह दे, अपने शजरा  में उन्हें लिखे और अंजाम दे ताकि कल क़ियामत के दिन शर्मिंदगी न हो।
अस्मा-ए-मुबारक जो मुर्शिद के सामने रखा था दुआ’-गो को अ’ता फ़रमाया। बा’द-अज़ां ख़िर्क़ा, नालैन, चोबैन और मुसल्ला अ’ता फ़रमाया फिर इर्शाद फ़रमाया ये तबर्रुकात हमारे पीरान-ए-तरीक़त की याद-गार हैं जो रसूल-ए-ख़ुदा से हम तक पहुंचे हैं और हमने तुझे दिए हैं इनको उसी तरह अपने पास रखना जिस तरह हमने रखा। जिसको ‘मर्द’ पाना उस को ये हमारी यादगार देना। ये इर्शाद फ़रमा कर अपने आग़ोश में ले लिया और सर-ओ-चश्म को बोसा दिया। फ़रमाया तुझको ख़ुदा की सुपुर्दगी में दिया फिर आ’लम-ए-तहय्युर में मश्ग़ूल हो गए दुआ’-गो रुख़्सत  हुआ (13)
(अनीसुउल-अर्वाह तर्जुमा सफ़हा 3 ता6,मिरअतुल-अस्रार उर्दू तर्जुमा सफ़हा (556)

बारगाह-ए-इलाही में हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु के लिए शैख़-ए-मुकर्रम हज़रत उ’स्मान हारूनी मक्की चिश्ती रज़ी अल्लाहु अ’न्हु की दुआ’एं:

शैख़ का दर्जा-ए-जांनशीन रसूल-ओ-नाएब-ए-रसूल का है जैसे कि शैख़ अ’ब्दुलहक़ मुहद्दिस देहलवी फ़रमाते हैं। ‘जान लें कि शैख़ से मदद माँगना हुज़ूर सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम से मदद माँगना है क्योंकि ये उनके नाएब और जांनशीन हैं और इस अ’क़ीदे को पूरे यक़ीन के साथ अपने पल्ले बांध लें। मज्मुआ’तुल-मकातीबुर्रसाएल 350)
शैख़ का दर्जा रुहानी बाप का है।शैख़ शुयूख़-ए-आ’लम हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु अपने ख़िताबात में मुरिदीन से फ़रमाते थे “ऐ फ़र्ज़न्दों’’ रुहानी बेटों !
(फ़ुतूहुल-ग़ैब उर्दू तर्जुमा, फ़ुतूहात-ए-रब्बानी उर्दू तर्जुमा वग़ैरा)

शैख़ अपने मुरीदों पर बहुत हक़ रखता है और बहुत मोहब्बत-ओ-नवाज़िशात भी करता है। हज़रत शैख़ उ’स्मान हारूनी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने जो फ़ैज़ान-ए-मा’रिफ़त  हुज़ूर ग़रीब नवाज़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु पर किया उसकी मिसाल दुनिया देने से क़ासिर है। सियरुल-आ’रिफ़ीन में हामिद बिन फ़ज़लुल्लाह जमाली लिखते हैं ‘हज़रत उ’स्मान हारूनी ने बारहा अपनी ज़बान-ए-मुबारक से ज़िक्र किया कि “हमारा मुई’नुद्दीन महबूबुल्लाह है और हम उसकी मुरीदी पर फ़ख़्र करते हैं’। (सियरुल-आ’रिफ़ीन,4 (14)

 आप का’बा का ग़िलाफ़ पकड़ कर दुआ’ फ़रमाते या अल्लाह मुई’नुद्दीन को मुझ जैसा कर दे। एक मक़ाम पर फ़रमाते हैं मुई’नुद्दीन इलाही मुई’नुद्दीन को अपना जैसा कर दे। रब्बुल-आ’लमीन मेरी क़ब्र को मिटा दे मगर मुई’नुद्दीन की क़ब्र को ता-क़ियाम-ए-क़ियामत आबाद रखना। मुई’नुद्दीन से वो हो जो ख़ुदा से होता है (14)ii

इर्शादात

गुफ़्त:-ए-ऊ गुफ़्त:-ए-अल्लाह-बूद, गरचे अज़ हुल्क़ूम-ए-अ’ब्दुल्लाह बूद
ज़मीन सख़ी लोगों पर फ़ख़्र करती है और उनके हर क़दम  पर एक नेकी उनके नामा-ए-आ’माल में लिखी जाती है। सख़ी  जन्नत में सबसे हज़ार साल क़ब्ल दाख़िल होगा।
जो शख़्स मोमिन का दिल ख़ुश करता है हक़-तआ’ला उसकी बदी कम और नेकी ज़्यादा करता है और मोमिन का सताना ऐसा है जैसे किसी ने अपने लिए जहन्नम में घर बना लिया।
जब दोस्त अपना हो जाता है तो तमाम मौजूदात अपनी हो जाती है मगर लाज़िम ये है कि तमाम मौजूदात से फ़ारिग़ रहे और दोस्त से मश्ग़ूल रहे और उस की इत्तिबा’ करे।
अफ़सोस है उन फ़क़ीरों पर जो सैर हो कर खाते हैं और अपने आपको फ़क़ीर जानते हैं और दरवेशों का ख़िर्क़ा पहनते हैं। मोमिन का सताने वाला मुनाफ़िक़ और मलऊ’न है।
जो शख़्स प्यासे को पानी पिलाता है वो गुनाहों से ऐसा पाक-ओ-साफ़ हो जाता है जैसे माँ के पेट से पैदा हुआ हो। अगर उस दिन मर जाए तो शहीद होता है और बे-हिसाब जन्नत में जाएगा।
दरवेश-ए-दरोग़-गो, तवंगर-ए-बख़ील और सौदा-गरान-ए-ख़ाइन को बहिश्त की तरफ़ राह नहीं।
अहल-ए-इ’श्क़ सिवा-ए-दोस्त के किसी की तरफ़ मुतवज्जिह  नहीं होते इसलिए कि जो ब-ग़ैर दोस्त के शाद है वो तमाम अंदोह के क़रीब है।
मैं उस वक़्त तक नमाज़ शुरूअ’ नही करता जब तक हक़-तआ’ला की हुज़ूरी हासिल नहीं होती क्योंकि वो नमाज़ नमाज़ नहीं जिसमें ने’मत-ए-मुशाहिदा न हो।

विसालः

आपने 6 तारीख़ शव्वालुल-मुकर्रम 617 हिज्री1220 ई’स्वी को मक्का मुकर्रमा में 91 साल की उ’म्र में विसाल फ़रमाया । गंजीना-ए-सर्मदी में आपकी तारीख़-ए-विसाल ये लिखी है।

रफ़्त अज़ दुनिया चू दर ख़ुल्द-ए-बरीं
शैख़  उ’स्मां मुक़्तदा-ए-औलिया
साल-ए-वस्लश क़ुतुब-ए-आँ आमद अ’याँ
जल्वा-गर शुद नीज़ ताजुल-अस्फ़िया

मज़ार-ए-मुक़द्दस मक्का मुअ’ज़्ज़मा में माबैन-ए-का’बा शरीफ़ और जन्नतुल-मुअ’ल्ला है। पहले मज़ार पर इमारत और गुंबद भी बना हुआ था । सऊ’द ने उसे शहीद करा दिया। ये जगह अब महलुश्शरीफ़ुल-हुसैन के अंदर वाक़े’ है जिसमें एक लकड़ी का चबूतरा बना हुआ है। (17)

जिसने भी आप के मज़ार शरीफ़ को मिटाने की कोशिश की वो ना-मुराद हुआ| शरीफ़ हुसैन का निस्फ़ महल इसी वजह से जल चुका है।

ख़ुलफ़ा-ए-किराम

जांनशीन-ओ-ख़लीफ़ा-ए-अकबर ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान क़ुतुबुल-मशाइख़ हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन हसन संजरी अजमेरी चिश्ती  जो इमाम-ज़ादा-ए-सय्यिद इब्राहीम अल-मुर्तज़ा अल-असग़र बिन इमाम मूसा अल-काज़िम की औलाद-ए-अमजद हैं और 526 हिज्री में हज़रत शैख़ अ’ब्दुलक़ादिर गिलानी के विसाल के एक साल बा’द में ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी से बग़दाद में मुरीद हुए थे और आपका लक़ब नाएबुर्रसूल फ़ी-हिंद और सुल्तानुल-हिंद है। आपको अ’वाम ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ के नाम से पुकारती है। आपका मज़ार-ए-अक़्दस अजमेर शरीफ़ में मर्जा’-ए-ख़लाइक़ है। हज़रत सय्यिद ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़्रुद्दीन जिनका मौलिद गर्देज़ी जो अफ़्ग़ानिस्तान में वाक़े’ है, आपका इमाम-ज़ादा सय्यद हुसैन बिन इमाम मूसा अल-काज़िम की औलाद से सिल्सिला-ए-नसब था। आप बीस साल की उ’म्र में 569 हिज्री में ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी से बैअ’त हुए। या’नी हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के बैअ’त होने के सात साल बा’द बैअ’त-ए- इरादत हासिल की और जब ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी जब ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ को हिन्दुस्तान के लिए रुख़्सत किया  उस वक़्त आपने अपने एक और मुरीद ख़्वाजा सय्यिद फ़ख़्रद्दीन को ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ का हम-सफ़र-ओ-हम रिकाब बना कर हिंद की जानिब रवाना किया फिर मुसलसल ख़्वाजा साहिब के साथ रहे और हिन्दुस्तान साथ तशरीफ़ लाए। आपको पीर भाई होने का शरफ़ तो हासिल था ही मगर ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ की ख़िदमत को अपना फ़ख़्र समझा और ख़्वाजा-ए-आ’ज़म ख़ुद अपनी ज़बान-ए-मुबारक से इर्शाद फ़रमाते थे फ़ख़्रुना फ़ख़्रुद्दीन या’नी फ़ख़्रुद्दीन मेरा फ़ख़्र है। आप जिस तरह ख़्वाजा-ए-आ’ज़म की हयात में ख़िदमत करते थे उसी तरह बा’द-ए-विसाल भी ख़िदमत का सिल्सिला जारी रखा और ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ के विसाल के दस साल बा’द रिह्लत फ़रमाई। आपका मज़ार भी ख़्वाजा-ए-आ’ज़म के मज़ार-ए-मुबारक के गुंबद-ए-मुबारक के अंदर तोशा-ख़ाना में है। हज़रत ख़्वाजा ग़रीब-नवाज़ के मौरूसी-ख़ुद्दाम सय्यिद-ज़ादगान आप ही की औलाद से हैं और आज भी अपने जद्द-ए-अमजद के कार को ब-ख़ूबी अंजाम दे रहे हैं।

हज़रत शैख़ मोहम्मद तुर्क:

आप भी ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी के मुमताज़ ख़ुल़फ़ा में से है| साहिब-ए-मज्मउ’ल-औलिया ने सालिक-ए-तरीक़त आ’रिफ़-ए-हक़ीक़त सुल्तान-ए-अ’स्र बुरहान-ए-दह्र ताबे’-ए-सुनन-ए-फ़े’ली-ओ-क़ोली तहरीर फ़रमाया है । अ’वाम आपको पीर-ए-तुर्क, तुर्कमान-ओ-तुर्क-ए-सुल्तान कहती है। तज़्किरों में आपका मौलिद तुर्कमान तहरीर है। आप नारनौल में तशरीफ़ लाए और नारनौल में अ’वाम की रुश्द-ओ-हिदायत फ़रमाई और नारनौल में हौज़ के पास आपका मज़ार मल्जा-ए-ख़्वास-ओ-आ’म है जो आज हरियाणा में मौजूद है।अख़बारुल-अख़्यार के मुतालिआ’ से ये पता चलता है कि ख़्वाजा नसीरुद्दीन चराग़ देहलवी ने आपके मज़ार-ए-मुबारक की हाज़िरी से मुशर्रफ़ हुए हैं।

हज़रत नजमुद्दीन सुग़रा, हज़रत शैख़ सा’दी लंगोची

इन दोनों हज़रात के बारे में तज़्किरों में ख़ामोशी है।
नोट: हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी के मल्फ़ूज़ात को ख़्वाजा-ए-आ’ज़म ने बीस साल की मुद्दत में जम्अ’ किया जिसका नाम अनीसुल-अर्वाह रखा जिसके लुग़्वी मा’नी रूहों की दोस्ती  के होते हैं ।कुछ जदीद मुहक़्क़िक़ीन हज़रात ये एक इल्ज़ामी बात तहरीर करते हैं कि ख़्वाजगान-ए-चिश्त ने कोई तस्नीफ़ नहीं लिखी पर ये मल्फ़ूज़ात मुंसूबात में से हैं जब कि मल्फ़ूज़ात तस्नीफ़ नहीं तालीफ़ होते हैं और मशाइख़ में ये तरीक़ है कि कोई भी मुमताज़ मुरीद या ख़लीफ़ा रक़म करता है इसलिए ये तस्नीफ़ में शुमार नहीं होते हैं बल्कि तालीफ़ में शुमार होते हैं। मल्फ़ूज़ात और अनीसुल-अर्वाह का तहक़ीक़ी जाइज़ा सय्यिद  आ’तिफ़ हुसैन काज़िमी चिश्ती ने अपने मक़ाला में लिया है जो इस मौज़ूअ’ पर क़ाबिल-ए-मुतालिआ’ है।
सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बुज़ुर्गों की ख़ुसूसिय्यत सरवर-ए-इ’श्क़-ए-इलाही शैख़ से वालिहाना मोहब्बत और इन्सानियत की ग़ैर-मा’मूली ख़िदमत है। इमामुस्सालिकीन महबूब-ए-हक़ हज़रत शाह मोहम्मद तक़ी अ’ज़ीज़ मियाँ साहिब मुतख़ल्लिस राज़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु फ़रमाते हैं:

सरज़मीन-ए-चिश्त रा आब-ओ-हवा-ए-दीगर अस्त
जाँ-सितान-ए-दीगर-ओ-हर दिल-रुबा-ए-दीगर अस्त


किताबियात


13 ,3, 12 i, अनीस उल-अर्वाह: मज्मूआ’-ए-मल्फ़ूज़ात, ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी मुरत्तबा हज़रत ख़्वाजा मुईनउद्दीन हसन  संजरी अजमेरी , उर्दू तर्जुमा , नाशिर मक्तबा जाम-ए-नूर,422, मटिया महल ,जामा’ मस्जिद दिल्ली 6

ख़ैरुल-मजालिस. मल्फ़ूज़ात-ए-हज़रत ख़्वाजा मख़दूम नसीर उद्दीन महमूद चराग़ देहलवी रज़ीअल्लाहु  अ’न्हु ,मुरत्तबा   ख़लीफ़ा क़ाज़ी हज़रत हमीद शाइ’र-ए-मा’रूफ़ क़लंदर, उर्दू तर्जुमा मौलाना अहमद अ’ली मरहूम मग़फ़ूर , नाशिर परवेज़ बुक डिपो, दिल्ली, नाज़ पब्लिशिंग हाऊस पहाड़ी भोजला, दिल्ली 6

13, i9ii9 सियरुल-औलिया:तस्नीफ़ हज़रत सय्यिद मुहम्मद मुबारक अमीर-ए-ख़ुर्द किरमानी तर्जुमा ए’जाज़-उल-हक़ कुद्दूसी तबा’-ए-अव़्वल नवंबर2010 ईसवी , नाशिर ख़्वाजा हसन सानी निज़ामी दरगाह हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया, नई दिल्ली ।10013

14 सियरुल-आ’रिफ़िन : मुसन्निफ़ हज़रत हामिद बिन फ़ज़लुल्लाह, उर्दू तर्जुमा मुहम्मद अय्यूब क़ादरी सफ़हात451, इशाअ’त अप्रैल,1976 ईसवी , मर्कज़ी उर्दू बोर्ड, लाहौर

12, 17ii मिर्अतुल-आसार : शैख़ अ’ब्दुर्रहमान चिशती मुतवफ़्फ़ा1094 हिज्री ज़माना-ए-तालीफ़1045 ता1065 मुतर्जिम मौलाना अल्हाज वाहिद बख़्श  सय्याल  चिशती साबरी, सन-ए-इशाअ’त2005, ताबे’ एम एस अंसारी प्रेस लाल कुँआं दिल्ली, मकतबा रिज़्विया अदबी दुनिया,510 मटियाल महल दिल्ली 6

6۔ सवानिह-ए-शैख़ुल-इस्लाम हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी चिशती अजमेरी । हज़रत सय्यिद ए’जाज़ अ’ली चिशती अजमेरी फ़ाज़िल-ए-फ़रंगी महल इशाअ’त मुअ’य्यना प्रेस अजमेर शरीफ़1345 हिज्री|

1۔(बह्र-ए-ज़ख़्ख़ार फ़ारसी)तसनीफ़ हज़रत वजीह-उद्दीन अशरफ़, दर्सगाह-ए-इस्लामी अ’लीगढ़ , तहक़ीक़-ओ-तदवीन आज़र मी- दुख़्त सफ़वी,इशाअ’त मर्कज़-ए-तहक़ीक़ात-ए-फ़ारसी राएज़नी-ए-फ़रहंगी-ए-जुमहूरी-ए-इस्लामी-ए-ईरान, दिल्ली

7 :सियरुल अक़ताब : शैख़ अल्लाह दया चिशती साबरी उ’स्मानी

18 तारीख़-ए-ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान तस्नीफ़ प्रोफ़ेसर तिहरानी तहक़ीक़-कार पब्लिशर6/ 205 जे एक्स्टेशन लक्ष्मी नगर। दिल्ली।110092۔मतबा’ क्लासिक आर्ट प्रिंटर्स चांदी महल, दरियागंज , नई दिल्ली,110002 ، ISBN-978380182354,

(14)ii मुई’नुल-कुल ज़िक्र-ए-उ’स्मान चिशती हज़रत नवाब मुहम्मद ख़ादिम हसन शाह साहिब, पब्लिकेशन गुदड़ी शाही बुक डिपो। ऐडीशन 2010 ईसवीISBN-9788185892092

अख़्बारुल-अख़यार शैख़ अ’ब्दुलहक़ मुहद्दिस देहलवी, तर्जुमा मौलाना सुब्हान महमूद मौलाना मुहम्मद फ़ाज़िल, नाशिर अकबर बुक सेलर

मज्मउ’ल-औलिया अज़ अ’ली अकबर उर्दुस्तानी (ख़त्ती नुस्ख़ा पंजाब यूनीवर्सिटी लाइबरी क़लमी नुस्ख़ा नंबर8050)

Malfuzat an analysis of the criticism on Anees- ul- Arwah by Syed Aatif Hussain Kazmi Chishty
https://www.academia.edu/31388765/Malfuzat_an_analysis_of_the_criticism_of_Anees_ul_Arwah

रे एक मक़ाम का नाम है जो अब उज़बेकिस्तान में है (i)

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