हज़रत सूफ़ी मनेरी की तारीख़-गोई का एक शाहकार – जनाब रख़्शाँ अब्दाली, इस्लामपुरी

हज़रत सूफ़ी मनेरी (सन 1253 हिज्री ता सन 1318 हिज्री )अपने वक़्त के एक बा-कमाल शाइ’र थे। आपको हज़रत-ए-ग़ालिब से तलम्मुज़ था।आपके समंद-ए-फ़िक्र की जौलान-गाह उर्दू ही की वादी नहीं बल्कि ज़मीन-ए-पारस भी थी और नस्र-ओ-नज़्म दोनों ही हैं।

आपने इतनी वक़ीअ’ यादगारें छोड़ी हैं जिनमें बा’ज़ मंज़र-ए-आ’म पर आकर क़ुबूल-ए-आ’म की सनद हासिल कर चुकी हैं और बा’ज़ हनूज़ पर्दा-ए-गुम-नामी में मस्तूर हैं।इन सुतूर से मक़्सूद आपके हालात पेश करना नहीं है कि राक़िम के क़लम से रिसाला-ए-“मआ’रिफ़ (आ’ज़म गढ़) माह-ए-जून सन 1932 ई’स्वी में शाए’ हो चुके हैं बल्कि इस एहसास के पेश-ए-नज़र हज़रत-ए-सूफ़ी की मुख़्तलिफ़ ख़ुसुसियात-ओ-हैसियात पर रौशनी डाली जाए और आपकी नस्र-निगारी से रू-शनास कराया जाए, मस्नवी-निगारी के कमालात नुमायाँ किए जाएँ और तारीख़-गोई की झलक दिखाई जाए। आपकी शाइ’री के इन तमाम पहलूओं को एक-एक कर के पेश करने की ज़रूरत है। आज की सोहबत में हज़रत सूफ़ी मनेरी की तारीख़-गोई का एक नमूना पेश कर रहा हूँ।

हज़रत शाह आ’ज़म अ’ली उ’र्फ़ बेकन फ़िरदौसी मनेरी (रहि·) का शुमार मनेर शरीफ़ के मुम्ताज़ बुज़ुर्गों में है। हज़रत जनाब-ए-सूफ़ी के मामूँ थे। आपका विसाल सन 1270 हिज्री में हुआ है। हज़रत-ए-सूफ़ी ने आपकी तारीख़-ए-वफ़ात नज़्म की है। नज़्म की की कुल काएनात पाँच शे’र है  लेकिन कमाल ये है कि सात सौ तीस तरह से तारीख़ निकलती है। मसलन हर मिस्रा’ अ’लाहिदा-अ’लाहिदा तारीख़ बताता है।तमाम मंक़ूता हुरूफ़ यकजा किए जाएँ तो तारीख़ निकल आती है। इसी तरह हुरूफ़-ए-मोहमला की यकजाई से एक तारीख़ निकल आती है। ख़ुद हज़रत-ए-सूफ़ी के अल्फ़ाज़ में इस की तफ़्सील ये है:
तारीख-ए-विसाल जनाब गुफ़रान-ए-मआब हज़रत शैख़ मोहम्मद आ’ज़म अ’ली उ’र्फ़ शाह बेकन फ़िरदौसी मनेरी क़ुद्दिसल्लाहु सिर्रहुल-अ’ज़ीज़ कि हर मिस्रा’अश तारीख़ अस्त-ओ-सिवा–ए-आँ हुरूफ़-ए-मंक़ूता यक मिस्रा’ बा-हुरूफ़-ए-मंक़ूता दीगर मसारीअ’ अज़ हर मिस्रा’ की ख़्वाहंद बाशंद तारीख़ अस्त-ओ-हम-चनीं हुरूफ़-ए-मोहमला यक मिस्रा’ बा-हुरूफ़-ए-मोहमला–ए-दीगर मसारीअ’ हिसाब कुनंद तारीख़ याबंद-ओ-हम-चनीं हुरूफ़-ए-मंक़ूता-ए-ईं-ओ-मोहमला-ए-आँ ईं मंक़ूतता ए-हर गूना कि शुमार कुनंद तारीख़ बाशद, जुम्लगी ब-हफ़्त-सद-ओ-सी नौअ’ तारीख़ बर मी-आयद ब-दीं तफ़्सील सन 1270 हिज्री
हर मिस्रा’ माद्दः-ए-तारीख़ अस्त
मंक़ूता बा-मंकूता 45 मोहमला बा-मोहमला 45 मंक़ूता-ए-ईं-ओ-मोहमला –ए-आँ 45 मोहमला-ए-ईं-ओ-मंक़ूता-ए-आँ 45 शंजर फ़ी-बा-शंजर-फ़ी 45
सियाही बा-सियाही 45 शंजरफ़ी-ईं-ओ-सियाही-आँ 45 सियाही–ए-ईं-ओ-शंजरफ़ी-आँ 45  शंजरफ़ी-ईं-ओ-मंक़ूत-ए-आँ 45
मंक़ूता–ए-ईं-ओ-शंजरफ़ी-आँ 45 शंजरफ़ी-ईं-ओ-मोहमला–ए-आँ 45 मोहमला-ए-ईं-ओ-शंजरफ़ी-आँ 45 सियाही–ए-ईं-ओ-मंक़ूता-ए-आँ 45
मंक़ूता-ए-ईं-ओ-सियाही-ए-आँ 45 सियाही-ए-ईं-ओ-मोहमाला–ए-आँ 45 मोहमला-ए- ईं-ओ-सियाही–ए-आँ 45 जम्अ’ कुल 730

तारीख़
क़ुतुब-ए-औज–ए-वक़्त आ’ली-वज्ह ई’द-ए-रोज़गार
जल्वः-ए-सुब्ह-ए-हुदा साफ़ी-ए-नफ़्स क़ुद्सी शिआ’र
कर्दः जाँ तस्लीम-ए-हक़ हादी बदीं माह-ए-वरा
शाह बेकन ओजह-ए- इ’ल्म-ए-यक़ीं तारम-वक़ार
रुक्न-ए-हज्ज लुत्फ़-ए-शायाँ का’बः-ए-फ़िरौदसियाँ
मा’दिन-ए-जूद-ओ-सफ़ा-ओ-अह्ल-ए-सिद्क़-ओ-ऐ’तबार
का’ब-ए-हाजात सूफ़ी कू हरम मा’नी मताफ़
ई’सा-ए-औज-ए-हक़ीक़त वालिह-ए-दिल पर्दाः-दार
साल शुद कुल जुमलाऐ  दिल दीगर अज़ जम्अ’श बहम
वाँ ब-शंजरफ़-ओ-सवाद-ओ-मोहमला-ओ-नुक़्तः-दार

जुमला-हा-ए-शंजर फ़ी क़ुतुब-ओ-ई’द-ए-रोज़गार, सुब्ह-ए-साफ़ी नफ़्स-ए-क़ुद्स, जान-ए-तस्लीम-ए-मा। शाह-ए-बे-कन, इरम-ओ-शान फफ़र्द, मा’दिन-ए-सफ़ा-ओ-सद्र, का’बः-ए- जाकू  हर्र-ए-मा’नी-ए-मताफ़, औज-ए-हक़ीक़त, वा शुद गुल-दीगर ब-हम ब-शंजरफ़।

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