हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती

शहर-ए-अवध या’नी अयोध्या अहल-ए-तसव्वुफ़ का अ’ज़ीम मरकज़ रहा है। इसकी आग़ोश में अपने वक़्त के अ’ज़ीम-तरीन सूफ़िया-ए-उज़्ज़ाम और मशाइख़-ए-इस्लाम ने परवरिश पाई है। इस शहर को ला-सानी शोहरत क़ुतुब-मदार हुज़ूर सय्यिद ख़्वाजा नसीरुद्दीन महमूद अवधी चिराग़ देहलवी से हुई।आपके ख़ानवादे और सिलसिले में हर दौर में ऐसे-ऐसे नाबिग़ा-ए-रोज़गार अफ़राद होते रहे जिनकी वजह से अवध की शोहरत में बराबर इज़ाफ़ा होता रहा।

इसी ख़ानवादे में एक ऐसी हस्ती नुमूदार हुई जो ज़ुह्द-ओ-तक़्वा और इ’ल्म-ओ-मा’रिफ़त का संगम थी।उस ज़ात-ए-पाक का नाम हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती है।

लक़ब

आप का नाम हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती था। उ’लूम-ए-हदीस-ओ-फ़िक़्ह और इ’ल्म-ए-उसूल-ओ-मा’क़ूल-ओ-मंक़ूल वग़ैरा में यगाना-ए-रोज़गार थे, इसलिए आपने “अ’ल्लामा” ख़िताब पाया था।

नसबः-

आप हज़रत ख़्वाजा सैयद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के हक़ीक़ी ख़्वाहर-ज़ादा और ख़लीफ़ा-ए-आ’ज़म हैं।आप अयोध्या में तवल्लुद हुए।

आपके वालिद-ए-माजिद का नाम हज़रत सय्यद अबुल फ़ज़ल अ’ब्दुर्रहमान क़ादरी अल-गीलानी था। आपके दादा का नाम सय्यद अबुल फ़क़ीर यह्या महमूद अल-गीलानी है।साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ सफ़हा 31 पर फ़रमाते हैं कि “हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन अ’ल्लामा की वालिदा शैख़ नसीरुल-हक़-वद्दीन चिराग़ देहलवी की हक़ीक़ी बहन थी।आप ज़माने की राबिआ’ थीं। आपने अवध में वफ़ात पाई।”

हज़रत अ’ल्लामा का नसब शरीफ़ः-

हज़रत ख़्वाजा सय्यद कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती बिन हज़रत सैयद अबुल-फ़ज़ल अ’ब्दुर्रहमान क़ादरी गीलानी बिन हज़रत सैयद अबुल फ़क़ीर यहया महमूद अल-गीलानी बिन हज़रत अबू नस्र सय्यद अ’ब्दुल लतीफ़ रशीदुद्दीन अल-गीलानी बिन अबुल-आ’ला शैख़ अमीनुद्दीन गीलानी क़ादरी बिन अबू मोहम्मद सय्यद हसन मोहम्मद अल-गीलानी क़ादरी बिन हज़रत अबू मंसूर सैयद अ’ब्दुस्सलाम अल-गीलानी क़ादरी बिन हज़रत सैफ़ुद्दीन अ’ब्दुल वहाब अल-गीलानी क़ादरी बिन हज़रत मुहीउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म (रहि·)।

हज़रत चिराग़ देहलवी और हज़रत कलामुद्दीन अ’ल्लामा एक ही जद्द की औलाद हैं। साहिब-ए-ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया ग़ुलाम सरवर बिन गुलाम मोहम्मद आपके नसब के बारे में फ़रमाते हैं कि “शैख़ कलामुद्दीन अ’ल्लामा औलिया-ए-अकबर शैख़ नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी के ख़लीफ़ा-ए-आ’ज़म और हक़ीकी भांजे हैं।इनका सिलसिला-ए-नसब अमीरुल-मोमिनीन हज़रत हसन रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु तक पहुँचता है।”

दिल्ली में हाज़िरीः-

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते हैं कि पहले हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा की सुकूनत अवध में थी। फिर सुल्तानुल-मशाइख़ हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की इजाज़त से हज़रत नसीरुद्दीन महमूद देहली में मुक़ीम हुए अहल-ओ-अयाल ने अवध से देहली सकूनत अख्तियार की।

बैत ओ ख़िलाफ़त

देहली में आकर आप हज़रत महबूब-ए-इलाही हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के मुरीद हुए और ख़िर्क़ा ओ-ख़िलाफ़त पाया।

इसके बा’द आप के मामूँ हज़रत नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी ने भी आपके अपने ख़िलाफ़त से नवाज़ा। इस तरह हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा को हज़रत महबूब-ए-इलाही और हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी दोनो बुज़ुर्गान से ख़िलाफ़त हासिल हुई।

अहमदाबाद में क़यामः-

दिल्ली के 22 ख़्वाजा में डॉ. ज़ुहूरुल-हसन शारिब फरमाते हैं कि अनवारुल-आ’रिफ़ीन में है कि ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त पहनने के बा’द आप अहमदाबाद तशरीफ़ ले गए। वहाँ आप रुश्द-ओ-हिदायत फ़रमाते थे।बहुत से लोग आपके हल्क़ा-ए-इरादत में दाख़िल हुए।

हज और मक़ामात-ए-मुक़द्दसा की ज़ियारतः-

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते है कि जब हज़रत शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा को ख़ाना-ए-का’बा और रसुल्ललाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम के रौज़ा-ए-मुतह्हरा की ज़ियारत का बहुत इश्तियाक़ हुआ तो सुल्तानुल-मशाइख़ हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की ख़िदमत में हाज़िर होकर ख़ाना-ए-का’बा की ज़ियारत का इरादा ज़ाहिर किया। हज़रत महबूब-ए-इलाही ने आपको इजाज़त इ’नायत फ़रमाई और अपना पहना हुआ जामा पहनाया और अपनी जगह पर बैठ कर ख़िलाफ़त-नामा मरहमत फ़रमाया और ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त से नवाज़ा। उसके बा’द शैख़ कमालुद्दीन ने हज़रत महबूब-ए-इलाही की क़दम-बोसी की और रवाना हुए।

हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन औलिया की नज़र-ए-मुबारक की बरकत से आपने सात हज किए। ख़ाना-ए-का’बा की ज़ियारत की और हज़रत मोहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम की ज़ियारत से भी मुशर्फ़ हुए। बैतुल मुक़द्दस की ज़ियारत की।

फ़ुतूहातः-

बैतुल मुक़द्दस की ज़ियारत के बा’द आप ख़ुरासान की जानिब गए। उस दौरान तमाम ममालिक के बादशाह,अमीर,उमरा,शैख़ अ’ल्लामा की ज़ियारत के लिए आते और ता’ज़ीम बजा लाते।आपको तोहफ़े में बहुत माल-ओ-अस्बाब हासिल हुए।

चुनाँचे जब आप देहली में तशरीफ़ फ़रमा हुए तो आपके पास तेरह गोनें (बोरिया) सोने और चाँदी की थी। तकमिला–ए-सियारुल-औलिया में है कि उन ऊँटों पर लगभग तीस हज़ार अशरफ़ियाँ और रुपये भी थे।

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते हैं कि जब हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी ने तेरह ऊँट माल-ओ-अस्बाब के लदे हुए देखे तो फ़रमाया,शैख़ कमालुद्दीन इतनी दुनिया तुम ने किस वास्ते जम्अ’ की है।

शैख़ कमालुदुदीन ने अ’र्ज़ किया कि मैं ने राह में सुना था कि सुल्तानुल मशाइख़ हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया ने रेहलत फ़रमाई है और आप उनकी जगह सज्जादगी पर बैठे हैं। अगर मैं ख़ाली हाथ जाऊँगा तो मेरी इहानत होगी। इसी ववास्ते  मैं असबाब-ए-ज़ाहिर लाया हूँ। अब मैं इसको आ’लिमों,सुलहा और मसाकीन में तक़्सीम कर दूँगा और अपने पास कुछ न रख़ूँगा।

चुनाँचे इसी तरह आपने तेरह ऊँट का माल-ओ-अस्बास आ’लिमों,मिस्कीनों और नेक लोगों में तक़्सीम किया।

वज़ीफ़ाः-

मजालिस-ए-हसनियाँ में है कि तातार ख़ान ने अस्सी टंके रोज़ाना बादशाही कचहरी से लिखवाकर आपके हुज़ूर पेश किया। हज़रत शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा इस परवाना को लेकर हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अ’र्ज़ किया कि क्या हुक्म है।हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी ने फरमाया “चूँकि ब-ग़ैर तलब और क़स्द के तुमको वज़ीफ़ा मिला है, इसलिए ये ब-मंज़िला-ए- फ़ुतूह है। तुम इसे क़ुबूल करो ।”

अपने पीर-ओ-मुर्शिद के फ़रमान के मुताबिक़ आपने वज़ीफ़ा क़ुबूल फ़रमाया।

बारगाह-ए-चिराग़ देहलवी में महबूबियतः-

हज़रत नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन अ’लामा को बहुत अ’ज़ीज़ रखते थे। मजालिस-ए-हसनियाँ में लिखा है कि हज़रत नसीरुद्दीन महमूद जिस जगह भी हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा की दस्तार देखते खड़े हो जाते थे। रिवायत है कि शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा का मकान शैख़ नसीरुद्दीन महमूद की ख़ानक़ाह के क़रीब ही वाक़े’ था। शैख़ नसीरुद्दीन अक्सर-ओ-बेश्तर अपनी ख़ानक़ाह के क़रीब ही में क़याम फ़रमाते और इरादत-मंदों को दर्स-ओ-तल्क़ीन से फ़ैज़याब करते। चूँकि शैख़ कमालुद्दीन की रिहाइश ख़ानकाह के सहन में क़रीब ही थी जब भी आप का गुज़र ख़ानकाह से होता तो आप का दस्तार-ए-मुबारक देखते ही हज़रत शैख़ महमूद खड़े हो जाते। आपके इस अम्र पर हाज़िरीन-ए-मज्लिस को बड़ी हैरत होती थी।

चुनाँचे शैख़ कमालुद्दीन भी अपने पीर-ओ-मुर्शिद और हक़ीक़ी मामूँ की इस ता’ज़ीम से बड़ी शर्मिंदगी महसूस करते थे और चूँकि दिन में कई मर्तबा ख़ानकाह से आपका गुज़र होता और आपको देखते ही हर बार शैख़ नसीरुद्दीन महमूद खड़े हो जाते इसी वजह से शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा दूसरे रास्ते से आया जाया करने लगे ताकि शैख़ नसीरुद्दीन महमूद को मज्लिस में खड़े होने की ज़हमत न हो।

एक रोज़ यही मुआ’मला पेश आया।आप को देखते ही हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन खड़े हो गए।तब मज्लिस में से किसी ने इसका सबब दरयाफ़्त किया तो शैख़ नसीरुद्दीन महमूद ने फ़रमाया – कोई नहीं जानता कि कमालुद्दीन का मर्तबा क्या है। जो शख़्स उनका एहतिराम करने में कोताही करेगा वह न सिर्फ़ मुझसे बल्कि ख़्वाजग़ान से बरगश्ता है।

आपके शागिर्दः-

शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा तमाम उ’लूम में माहिर थे। चुनाँचे आपके बहुत से शागिर्द थे।उनमें सबसे ज़्यादा मशहूर मौलाना अहमद थानेसरी, मौलाना आ’लम पानीपती, मौलाना आ’लम संगरेज़ा मुल्तानी और तातार ख़ाँ हुए।

हज़रत मख़दूम जहानियाँ जहाँगश्त ने भी शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा से इ’ल्म हासिल किया था।और “जामे’-ए-उ’लूम में फ़रमाते हैं कि मैं ने शरह-ए-मशारिक़ हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा से पढ़ी है।

तकमिला–ए-सियारुल-औलिया सफ़हा 161 पर है :

हज़रत मख़दूम जहाँनियाँ जहाँगश्त को जो मंशूर-ए-ख़िलाफ़त हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी से मिला वो हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा ने अपने हाथों से लिखा था।

इ’बादत-ओ-रियाज़तः-

आप एक बा-करामत हस्ती थे। साहिब-ए-इजाज़त दरवेश थे।आप एक बुलंद-पाया आ’लिम-ओ-मुक़्तदा-ए-अ’स्र थे। आपको सारा कलाम-ए-इलाही (क़ुरआन शरीफ़) मअ’-ए-तर्जुमा याद था।और हज़रत कुरआन पाक क़िराअत से पढते थे।बे-शुमार बंदगान-ए-ख़ुदा आपसे इक्तिसाब-ए-उ’लूम करते थे।हज़रत का मा’मूल था कि जब मस्जिद में दाख़िल होते थे तो सबसे पहले दो रक्अ’त नमाज़ आदाब-ए-मस्जिद अदा फ़रमाते थे।फिर दो रक्अ’त नमाज़ तयहिय्यतुल वज़ू पढ़ते। इसके बा’द नमाज़ में मशग़ूल होते थे।नवाफ़िल बहुत ज़्यादा पढ़ते थे।मिज़ाज़ में तहम्मुल ज़्यादा था।आप किसी को मुतलक़ बुरा भला नही कहते थे।अगर कभी ज़बान-ए-मुबारक से कुछ निकलता तो फ़ौरन पूरा हो जाता था।

शादी और औलादः-

साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते हैं कि शैख़ कमालुद्दीन अ’ल्लामा के ज़ियारत-ए-मक्का से लौटने के बा’द हज़रत नसीरुद्दीन महमूद ने आपसे फ़रमाया कि अगर तुम मुजर्रद रहना चाहते हो तो हमारी नस्ल नहीं होगी और अगर अ’याल-दार हो जाओगे तो हमारी नस्ल बाक़ी रहेगी लिहाज़ा आप निकाह के लिए राज़ी हुए।

हज़रत नसीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी और हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन अ’ल्लामा दोनो हज़रात एक ही जद्द की औलाद हैं। हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा निहायत वजीह-ओ-जमील थे और आपकी ज़ौज़ा मोहतरमा सियाह-फ़ाम थीं । लिहाज़ा आप छः साल तक अपनी अहलिया की जानिब मुतवज्जिह न हुए। एक दिन शैख़ नसीरुद्दीन महमूद ने अपने भांजे शैख़ ज़ैनुद्दीन अ’ली को हुक्म दिया कि एक मकान ठीक करो। जुमआ’ की नमाज़ के बा’द हज़रत ख़्वाजा चिराग़ देहलवी वहाँ तशरीफ़ ले गए और हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा और उनकी मनकूहा को वहाँ तलब किया और फ़रमाया ये मकान तुम को दिया। यहाँ रहो और फ़रमाया- लोग रंग पर नज़र करते हैं (देखते हैं) और इस औ’रत के बत्न पर नज़र नहीं करते की कैसे-कैसे औलिया इस औ’रत के शिकम से पैदा होंगे और इंशा अल्लाह ब-रोज़-ए- क़यामत तक तुम्हारी औलाद से औलिया-अल्लाह पैदा होते रहेंगे। चुनाँचे ऐसा ही हुआ। आप की औलाद में तवातुर-ओ-तसलसुल से औलिया अल्लाह पैदा होते आए हैं।

हज़रत ख़्वाजा कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती के 3 बेटे (1) हज़रत शैख़ सय्यद  निज़ामुद्दीन (2) हज़रत शैख़ सय्यद नसीरुद्दीन (3) हज़रत शैख़ुल-मशाइख़ सय्यद सिराजुद्दीन चिश्ती और 1 बेटी थी

हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीनः– साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते हैं कि हज़रत शैख़ निज़ामुद्दीन बहुत दाना थे। एक रोज़ मज्लिस में गए। वहाँ एक दाना से बहस की। उसने कहा शैख़-ज़ादे तुम जवान ही फ़ौत हो जाओगे। उसी वक़्त तप हो गया और घर पहुँच कर आ’लम-ए-बक़ा को सिधारे ।

(2) हज़रत शैख़ नसीरुद्दीनः- हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन ने अपने वालिद हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा से इ’ल्म हासिल किया था और आपकी हयात में ही तहसील-ए-इ’ल्म से फ़ारिग़ हो गए थे।

हज़रत नसीरुद्दीन के 2 बेटे थे (1) हज़रत शैख़ मोहम्मद (2) हज़रत शैख़ मीराँ।

Hazrat Khwaja Syed Nasiruddin Ali ibn Hazrat Syed Kamaluddin Allama chishty (2) Hazrat Khwaja Shaikh Syed Miran R.A. Mazar Shareef :: Shor Gumbad, Katora Hauz , Gulbarga

(A) हज़रत मख़दूम शैख़ मोहम्मद, सुल्तान इब्राहीम शाह शर्क़ी के ज़माने में जौनपुर आए और शहर-ए-जाफ़रन ख़रीद (वर्तमान में चक हाजी उ’र्फ़ शैख़पुर,सिकंदरपुर,जिला’ बलिया, यू·पी) में क़याम किया। आपने 11 हज पा-प्यादा (पैदल) किए।आपको फूलों से बहुत मोहब्बत थी। आपके पर्दा फ़रमाने के बा’द भी आपके मज़ार-ए-मुबारक पर फूलों की बारिश होती रहती थी, इसलिए आपको हाजी मख़दूम शैख़ मोहम्मद उ’र्फ़ मख़दूम शाह फूल कहा जाता है। आपकी दरगाह शरीफ़ चक हाजी उ’र्फ़ शैख़पुर,सिकंदरपुर ज़िला’ बलिया, यू.पी में है।

Hazrat Makhdoom Haji Shaikh Syed Mohammad Urf Makhdoom Haji Shah Phool R.A. Mazar Shareef :: Chak Haji Urf Shaikhpur, Sikandarpur, District- Ballia ,U.P.

आपकी नस्ल-ए-बा-बरकत में एक से एक औलिया,मख़दूम,मशाइख़ तवल्लुद होते रहे। उर्दू अदब के मशहूर शाइ’र-ओ-सूफ़ी अ’ल्लामा नुशूर वाहिदी आप ही की औलाद में से हैं। राक़िमुल-हुरूफ़ सय्यद रिज़वानुल्लाह वाहिदी के जद्द-ए-आ’ला भी आप ही हैं।

(B) हज़रत शैख़ मीराँ– साहिब-ए-मजालिस-ए-हसनियाँ फ़रमाते हैं कि हज़रत शैख़ मीराँ, हज़रत सय्यद बंदा नवाज़ गेसू-दराज़ के ख़लीफ़ा थे और आपकी औलाद गुलबर्गा शहर में ही रही। आपका मज़ार-ए-मुबारक कटोरा हौज़ शोर गुंबद गुलबर्गा में है।

(3) हज़रत शैख़ुल-मशाइख़ सिराजुद्दीन चिश्तीः-

आप हज़रत कमालुद्दीन अ’ल्लामा के जाँ-नशीन हुए और सिलसिला-ए-चिश्तिया के मस्नद-ए-सज्जादगी पर फ़ाइज़ हुए।आपको हज़रत ख़्वाज़ा नसीरुद्दीन महमूद रौशन चिराग़ देहलवी ने 4 साल की उ’म्र शरीफ़ में ख़िलाफ़त से नवाज़ा।फिर कम-उ’म्री में ही आपने वालिद-ए- बुजुर्गवार से ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त हासिल किया।हज़रत ख़्वाजा चिराग़ देहलवी के विसाल के बा’द आपने देहली में सुकूनत तर्क कर दी और गुजरात तशरीफ़ लाए और पाटन में सुकूनत इख़्तियार की और ता-हयात यहीं रह कर आपने सिलसिले को फ़रोग़ दिया।आपका विसाल 21 जमादी उल अव्वल  817 हिज्री में हुआ।

बेटी

हज़रत ख्व़ाजा कमालुद्दीन अल्लामा की बेटी की शादी हज़रत शैख़ बुरहानुद्दीन के लड़के से हुई थी, जिनसे कोई औलाद नहीं हुई।

विसालः-

हज़रत ख़्वाज़ा कमालुद्दीन अ’ल्लामा चिश्ती का विसाल 27 ज़िल-क़ा’दा 756 हिज्री ब-मुताबिक़ 1355 ई’स्वी को हुआ। आपका मज़ार शरीफ़ अपने मुर्शिद-ओ-मामूँ हज़रत ख़्वाजा सय्यद नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी के रौज़ा शरीफ़ के पायताने (क़दमों में) गुंबद में है और ज़ियारत-गाह-ए-ख़ास-ओ-आ’म है।

किताबियात

1.   मज्लिस-ए-हसनियाँ-शैख़ मोहम्मद चिश्ती

2.   सियारुल-आ’रिफ़ीन- हज़रत हामिद बिन फ़ज़्लुल्लाह (शैख़ जमाली)

3.   ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया – हज़रत ग़ुलाम सरवर

4.   ख़ैरुल-मजालिस– मल्फ़ूज़ात-ए-ख़्वाजा मख़दूम नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी

5.   तज़्किरा मशाइख़-ए-बालापुर,हैदराबाद- डॉ सय्यदा अ’समत जहाँ

6.   तारीख़-ए-औलिया-ए-सूबा-ए-देहली- रुक्नुद्दीन निज़ामी देहलवी

7.   दिल्ली के 22 ख़्वाजा– डॉ. ज़ुहूरुल हसन शारिब

8.   ख़ानदानी बयाज़, रिज़वानुल्लाह वाहिदी, सिकंदरपुर, बलिया. यू.पी

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