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Kahnwa baaje ho badhaiya- Shah Turab and his Krishna

“Niki lagat mohe apne pia ki,Aankh rasili laaj bhari re…” Farid Ayaz Saab used to recite this kalam with “aankh rasili, aur jadu bhari re.” I had corrected him once over a WhatsApp call, and at the age of 73, he was a curious learner, had accepted it in absolute humility.Incidentally, today is the 100th… continue reading

हज़रत गेसू दराज़ हयात और ता’लीमात-प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

हज़रत ख़्वाजा सय्यिद मोहम्मद हुसैनी गेसू दराज़ (रहि·) सिलसिला-ए-आ’लिया चिश्तिया निज़ामिया की ऐसी बुलंद-पाया शख़्सियत हैं जिन्हों ने इस सिलसिले का रुहानी फैज़ान जुनूबी हिंद के आख़िरी सिरे तक पहुंचा दिया। आज सर-ज़मीन-ए-दकन की सैकड़ों चिश्ती ख़ानक़ाहें हज़रत गेसू दराज़ (रहि·) की कोशिशों का समरा हैं।आपके बारहवें दादा सय्यिद अ’ली हुसैनी हिरात से दिल्ली तशरीफ़ लाए… continue reading

ज़िक्र-ए-ख़ैर शाह मोहसिन अबुल-उ’लाई दानापुरी

बिहार की सर-ज़मीन से न जाने कितने ला’ल-ओ-गुहर पैदा हुए और ज़माने में अपने शानदार कारनामे से इन्क़िलाब पैदा किया।उनमें शो’रा,उ’लमा,सूफ़िया और सियासी रहनुमा सब शामिल हैं।जब ज़रूरत पड़ी तो क़ौम की बुलंदी की ख़ातिर सियासत में उतरे।जब मज़हब पर उंगलियाँ उठने लगीं तो ब-हैसीयत आ’लिम-ए-दीन उसका जवाब दिया। जब क़लम की ज़रूरत महसूस हुई… continue reading

ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी-हज़रत मुल्ला वाहिदी देहलवी

दिल्ली की जामा’ मस्जिद से साढे़ ग्यारह मील जानिब-ए-जनूब मेहरवली एक क़स्बा है जो बिगड़ कर मेहरौली हो गया है। दिल्ली वाले इसे क़ुतुब साहिब और ख़्वाजा साहिब भी कहते हैं। यहाँ बड़े-बड़े औलिया-अल्लाह मदफ़ून हैं। इनमें सबसे बड़े क़ुतुबुल-अक़ताब ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैहि हैं। यहीं क़ुतुब की नादिरुल-वजूद लाठ है। ये सुल्तान क़ुतुबुद्दीन ऐबक की मस्जिद क़ुव्वतुल-इस्लाम का मीनार है। यहीं दरवेश मनिश बादशाह शम्सुद्दीन अल्तमिश का मज़ार है और दिल्ली जिन बुज़ुर्गों की वजह से ‘बाईस ख़्वाजा की चौखट’ से मशहूर है उन बाईस में से अक्सर ख़्वाजगान इसी क़स्बा में आराम फ़रमा रहे हैं।

बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन ,फ़िरंगी महल्ली,लखनऊ

बात की इब्तिदा तो अल्लाह या ईश्वर के नाम ही से है जो निहायत मेहरबान और इंतिहाई रहम वाला है और सब ता’रीफ़ तो ईश्वर या अल्लाह की ही है जो सब जगतों का पालनहार है।जिसका कोई साझी नहीं है।जो निहायत रहम वाला मेहरबान है।उसका सलाम मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम,आल-ए-मोहम्मद,अस्हाब-ए-मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम और उनके… continue reading

हज़रत मीराँ जी शम्सुल-उ’श्शाक़- प्रोफ़ेसर निसार अहमद फ़ारूक़ी

उर्दू ज़बान की सर-परस्ती सब से ज़ियादा सूफ़िया ने की है।इसलिए कि उनका राब्ता अ’वाम और उनके मसाइल से था जिसके लिए अ’वामी ज़रिआ’-ए-इज़हार को समझना और बरतना भी ज़रूरी था।जब कि उ’लमा का सर-ओ-कार बेशतर इ’ल्मी मसाइल की तशरीह-ओ-तावील,तफ़्सीर-ओ-ता’बीर से रहा।और इस मक़्सद के लिए उन्हों ने अक्सर फ़ारसी ज़बान को वसीला बनाया जो… continue reading